गुरुवार, 27 मई 2010

अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट.....

अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट.....
रिटायरमैंट का नान सुनते ही मन मे एक ही बात आती है कि अब... बस... लाईफ मे फुल स्टाप लग गया. लेकिन जो लोग ऐसा सोच रहे हैं उनके लिए एक खुश खबर है अब अगर वो वाकई मे समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उनके लिए ढेरो रास्ते खुले हुए है. सरकार ने यह मससूस किया है कि रिटायरमैंट के बाद खाली बैठ कर लोग बहुत भावुक हो जाते हैं चिडचिडे हो जाते हैं वो मन ही मन सोचते हैं कि बस हमने जितना काम करना था वो कर लिया पर असल मे सही मायनो मे उनमे ऊर्जा की कोई कमी नही होती  इस बात को ध्यान मे रखते हुए सरकार ने उन सभी सीनियर सिटीजन को निवेदन किया है कि जो कोई भी समाज मे अपना योगदान देना चाहता हो उसका स्वागत है. बाकयदा उनकी संस्था होगी जिसमे वो अपनी पसंद के काम का चुनाव कर सकते हैं मान लो अगर वो अध्यापक रिटायर हुए है तो वो बच्चो को पढा सकते हैं या जिसमे भी रुचि हो वो काम कर सकते हैं जिससे ना उनमे भावना आएगी कि बस हमारी जिंदगी रुक गई है और वह उसी उत्साह और जोश के साथ काम करते जाएगें
हिसार के कृषि विश्व विधालय के आडिटोरियम मे एक क्रार्यक्रम के दौरान उपायुक्त् श्री युद्गबीर सिह ख्यालिया ने मीटिंग मे आए सभी सीनियर सिटीजन को बताते हुए यह कहा कि उनकी सेवाओ की, अनुभवो की देश को समाज को जरुरत है ताकि विकास के काम सुचारु रुप से चलते रहें. इस बात पर सभी ने बहुत खुश होकर ताली बजा कर इसका स्वागत किया .
काफी महेमानो को बोलने का अपने विचार रखने का मौका दिया गया.सभी बहुत खुश थे कि सरकार के साथ मिल कर अब  वो भी समाज मे अहम भूमिका निभाएगे बलिक बहुतो ने  अपने सम्बोधन मे यह भी कहा कि अब हमे खाली घर पर बैठ कर चिढ्ने कुढ्ने की बजाय काम मे ध्यान देना होगा.बच्चो को समझ कर उनके साथ मिल जुल कर रहना होगा.
कुल मिला कर सभी सीनियर सिटीजन ने क्रार्यक्रम बहुत पसंद किया और एक नए जोश नई आशा के साथ वो हाल से बाहर निकले.
इसमे कोई शक नही कि सरकार की तरफ से यह बहुत अच्छी पहल है अगर इस स्कीम से सम्बधित अधिकारी संजीदा होकर इसे लागू करे तो यकीनन इसके नतीजे बहुत अच्छे आने की उम्मीद है क्योकि इस स्कीम के बाद् सीनियर सिटीजन भी उस सम्मान को पा सकेग़ें जिसके वो सच्चे हकदार हैं और हमे उनका अमूल्य अनुभव मिल जाएगा जिसकी हमे बहुत जरुरत है इसलिए अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट..... अब तो शुरुआत है नई जिन्दगी की...
मोनिका गुप्ता
सिरसा   
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

हम और हमारी नकारात्मक सोच...

हम और हमारी नकारात्मक सोच...
कल ही हमारे मित्र विदेश से लौटे. उनको रिसीव करने हम भी एयर पोर्ट गए. वहाँ कार मे बैठ्ने से पहले उन्हे मिठाई खिलाई तो उन्होने उसका रैपर कोई कूडा दान ना दिखाई देने की वजह से सड्क पर ना डाल कर अपनी जेब मे ही डाल लिया. जबकि हमारे ही भारतीय मित्रो ने खुद तो मिठाई के रैपर को जमीन पर ही फेंक दिया और हसँते हुए अपने मित्र को सलाह देने लगे कि भई, यह तो भारत है यहाँ सब कुछ होता है यहाँ क्या सोचना... पूरी सडक अपनी है कही भी फेंक दो... बे वजह जेब क्यो खराब करनी है... उस समय तो मैं चुप ही पर वापिस लौट्ते वक्त यही सोचने लगी कि सारे आरोप सरकार पर लगा कर हम निशचिंत होकर बैठ जाते हैं कि सरकार ये नही कर रही वो नही कर रही बिना यह जाने कि हम क्या कर रहे है यह हमारी नकारात्मक सोच नही तो क्या है. अगर हम सभी अपना अपना फर्ज़ समझ ले तो  हमारे देश मे भी क्या कुछ नही हो सकता.
हम विदेशो की बात करते हैं कि वहा कठोर कायदे कानून है वहाँ सफाई रखनी जरुरी होती है नही तो फाईन लग जाता है वगहैरा वगहैरा .
पर उसके मुकाबले हम यहा क्या कर रहे हैं सिवाय कोसने के कि हम कितने गंद मे रह रहे हैं ...
और तो और बार बार मना किया जाता है कि गाडी चलाते समय सीट बेल्ट बाँध ले. हम मे से कितने बाधँते है. हाँ, अगर सामने चैकिंग़ हो रही होगी तो फाईन के चक्कर मे फटाफ़ट लगा लेग़ें... गाडी चलाते समय मोबाईल का इस्तेमाल भी नही करने की सलाह दी जाती है. पर हम तो महान है ना सबसे व्यस्त आदमी है अगर बात नही की तो लाखो का नुकसान जो हो जाएगा. हाँ, अगर कोई ट्क्कर वक्कर हो गई तो दोष अपना नही मानेग़ें...
अगर हम अपनी नकारात्मक सोच हटा कर सकारत्मक सोचेगे और समाज मे रहते हुए नियमो का पालन करेगें तो हमारा देश भी आदर्श देश बन सकता है.
यही बात काफी हद तक  मीडिया पर भी लागू होती है वो समाज को सच्ची दिशा दिखा सकता है पर उसकी सोच भी कम नही है मार पिटाई, खून खराबा, अन्धविश्वास, भविष्य वाणी, फालतू की फिल्मी खबरो आदि से भरी  रहती है खबरे पर जब बात आती है कुछ ऐसी खबरो की जिनसे समाज मे चेतना आए... वो तो गायब ही रहती है. अब ताजा उदाहरण ही है कि हमारे देश के स्कूली बच्चे ने एवरेस्ट पर जीत हासिल की और सबसे कम उम्र का विजेता बन गया. कोई बच्चो का खेल नही था कि वो ऐसे ही चढ गया. पर वो खबर भी ना के बराबर रही. जब मैं कुछ बच्चो का इंटरवयू लेने पहुची कि उन्हे यह जान कर कैसा लगा कि उनकी ही उम्र का अर्र्जुन ऐवरेस्ट को जीत कर लौटा है. उन्हे तो हैरानी हुई क्योकि इस बात की जानकारी ही नही थी उन बच्चो को कि ऐसा भी हुआ है अब भला बताओ कि समाज के सामने अगर उदाहरण ही नही रखे जाएगे तो समाज तरक्की कैसे करेगा सिर्फ क्राईम से तो गाडी नही चलेगी ना.
हम सभी को एक दूसरो पर दोष डालने की बजाय खुद को अच्छा बनाना होगा अपनी सोच सकारात्मक रखनी होगी अच्छे उदाहरण समाज के सामने रखने होग़ॆं ताकि उनका अनुकरण किया जा सके. इसमे आपसे अच्छी भूमिका तो कोई निभा ही नही सकता ...    
 मोनिका गुप्ता
सिरसा 
हरियाणा
Sirsa
Haryana 

शनिवार, 15 मई 2010

ये मौसम का जादू है ...

ये मौसम का जादू है ...
जी हाँ, मौसम भी हमारे जीवन मे जाने अंजाने जादू करता है हमारे मन को खुश, उदास या कभी थिरकने पर मजबूर कर देता है. आप मान लिजिए कि आप आफिस जा रहे हैं जबरदस्त गरमी है आपको ना सिर्फ गुस्सा आएगा बलिक सड्क पर  बेवजह पसीना पोछ्ते आप किसी से भी लडाई कर बैठेगे उसे धमकी भी दे डालेगे पर इसी स्थिती मे अगर मौसम साफ  ना हो यानि आकाश मे बाद्ल हो तो यकीनन आपका सीटी बजाता गुनगुनाता मन उसे बिना कुछ् कहे मुस्कुरा कर आगे बढ जाएगा.
बात सिर्फ यही खत्म नही होती .बरसात  का ये मतलब भी नही निकालना चाहिए कि मन हमेशा खुश ही रहेगा. पता है हल्की हल्की बूंदा बांदी अच्छी लगती है पर जहाँ मूसलाधार हो जाए वहा मन पकौडे और चाय से हट कर चिंता मे हो जाता है कि कही तेज बारिश से सड्क या गली का पानी घर मे तो नही आ जाएगा या छ्त तो ट्पकने नही लगेगी. ऐसे मे फिल्मी गाने हवा हो जाते हैं और टेंशन उसकी जगह ले लेती है क्योकि नेट और फोन भी अनिशिचत काल के लिए शांत हो जाते हैं और उनके शांत होने का मतलब हमारा सारी दुनिया से सम्प्रर्क  टूट जाना ..बसंत के मौसम मे फूल कितने अच्छे लगते हैं उन पर कितनी कविता बन जाती है पर जब हमे कोई फूल ही ना भेजे तो गुस्से का कोई अंत ही नही होता.
अब रही बात सरदी की.कितना भला लगता है ऐसे मौसम मे बाहर  धूप मे बैठना. पर गुस्सा तब आता है जब आप बाहर पलंग़ और कुरसी डाल कर बैठे हो और धूप बादलो मे छिप जाए और शाम तक दर्शन ही ना दे उस समय जबरदस्ती आपको घर के भीतर ही जाना पडता है.
तो देखा कितने उदाहरण है हम तो वही है पर मौसम अपना जादू चला कर हमे अपने आधीन कर ही लेता है. आप मेरी बात से सहमत है या नही जरुर बताना.
मोनिका गुप्ता   
सिरसा 
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa, Haryana

शुक्रवार, 14 मई 2010

बोल तू मीठे बोल ......

बोल तू मीठे बोल ......
लेख का टाईटल पढ कर आपको हैरानी हो रही होगी कि भला इस लेख मे क्या होगा ... भला ये भी कोई लेख हुआ. लेकिन जनाब सच पूछो तो आज के समय मे कमी ही इसी बात की है. हम ना तो किसी बात के धन्यवादी है और ना ही किसी की प्रशंसा करके खुश है. हांलाकि अपवाद तो होते ही है पर अधिकतर लोग किसी की तारीफ करने की बजाय मीठे बोल बोलने की बजाय  चुप रहना या कन्नी काट्ना ही बेहतर समझते हैं.
अब चाहे आप वेबसाईट की बात ले लो. तरह तरह के लेख, विचार इत्यादि छपते ही रहते हैं.  हम लोग उसे पढते भी है और शायद मन ही मन सराहते भी होगें पर जब बात आती है दो शब्द बोलने की ... हम पीछे हट जाते हैं और बहाना लगाते है अपनी व्यस्तता का या कोई और ...
अब सोचने की बात तो यह है कि आखिर किसी की तारीफ करने मे हम हिचकिचाते क्यो हैं आखिर  हमारा जाता क्या  है. लेकिन नही ...हम लोग मौका परस्त हो गए हैं तारीफ अगर करते भी है तो आमतौर पर उसकी जिससे काम निकलवाना हो. मै दुबारा कहना चाहूगीँ कि अपवाद होते हैं इसलिए आप बात को अपने उपर ना लेकर जाए कि हम तो ऐसे नही है. हाँ, तो मै कह रही थी कि तारीफ करने से आप को ही फायदा होगा वो ऐसे कि जिसकी आप तारीफ करेगे जिसके लिए मीठे बोल बोलेगें वो आप पर ना सिर्फ ज्यादा ध्यान देगा बलिक दस लोगो के सामने आपकी भी तारीफ करेगा.इतना ही नही वो खुद भी महेनत करके यह चाहेगा कि उसे फिर प्रशंसा मिले उसके लिए वो अपना काम ज्यादा लग्न से करेगा.तारीफ करने का यह मतलब भी नही है कि आप झूठी तारीफ करनी शुरु कर दे.जो सच्ची और अच्छी लगे उसकी तारीफ जरुर करे पर कई बार किसी को हौंसला देने के लिए या उसका मनोबल बढाने के लिए झूठी तारीफ भी करनी पडे तो भी पीछे नही हटाना चाहिए.
 अब आप घर का ही उदाहरण ले कि अगर आपने अपनी माता जी की या पत्नी की प्रशंसा कर दी कि खाना अच्छा बना है या घर बहुत साफ रखा है तो वो यह सुन कर ना सिर्फ खुश होगे बलिक और अच्छा काम करेगे क्योकि सारा दिन घर मे काम करने के बाद अगर दो मीठे बोल सुनने को मिल जाए तो क्या बात है नि;सन्देह उनकी थकावट उडन छू हो जाएगी.है ना.
यही बात बच्चो पर भी लागू होती है कि आपका बच्चा,बहन या भाई  कोई चित्र बनाता है या पेपर मे कम ज्यादा अंक लाता है तो  भी उसका उत्साह बढाए कि आपने अच्छा किया आगे भी और अच्छा करना. ना कि उसे टोके कि यह क्या कर दिया तुझसे अच्छा तो पडोसी जैन साहब का बेटा है जो इतना लायक है.
किसी की तारीफ करके, किसी से दो मीठे शब्द बोल कर तो देखिए जो खुशी आपको उसके चहेरे पर देखने को मिलेगी, उसका मनोबल बढेगा  इसका तो आप अंदाजा भी नही लगा सकते.तो हो जाए तैयार दो मीठे शब्द बोलने के लिए. जो जादू की झप्पी से कम काम नही करेगा. आप ही बताईए कि मैं सही हूँ या नही.
मोनिका गुप्ता   
सिरसा  
हरियाणा 

Sirsa
Haryana

रविवार, 9 मई 2010

जब पापा ने बनाए मटर के चावल ......

जब पापा ने बनाए मटर के चावल ......
हमेशा से ही मम्मी और रसोई का नाता रहा है.मैने आज तक पापा को रसोई से पानी का गिलास खुद लेकर पीते नही देखा. पापा सरकारी अफसर हैं  इसलिए द्फ्तर के साथ साथ घर पर भी खूब रौब चलता है.
मम्मी सारा दिन  घर पर ही रहती हैं.दिन हो या रात सारा समय काम ही काम हाँ भाई... नौकरों से काम लेना कोई आसान काम है क्या, हाँ.... तो मैं ये बता रही थी कि पिछ्ले कुछ दिनो से पापा खाने मे कोई ना कोई नुक्स निकाल रहे थे. इसीलिए मम्मी ने रसोइए की छुट्टी कर के रसोई की कमान खुद सम्भाल ली थी.
 पर पापा को इसमे भी तसल्ली नही हुई.नुक्स निकालने का काम चलता रहा.और साथ मे एक बात और जुड गई कि मेरी माता जी खाना ऐसे बनाती.माता जी खाना वैसे बनाती.खैर समय बीतता रहा.
शनिवार को पापा यह कह कर सोए कि कि वो कल सुबह नाश्ते मे  बासी पराठा और आलू मैथी ही खाएगे.मम्मी ने बहुत मन से बनाया. पर वो भी पापा को पसंद नही आया.
उसी समय पापा ने एलान कर दिया कि वो दोपहर को खुद ही मटर के चावल बनाएगे. मम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट और मैं हैरान.पापा और खाना.मुझे समझ नही आ रहा था.
दोपहर के एक बजे मम्मी ने जबरदस्ती टी वी पर क्रिक्केट मैच देखते हुए पापा को
उठाया कि भूख लग रही है.खाना बनाओ. मैच बहुत मजेदार चल रहा था .... पापा अनमने भाव से उठे.मम्मी ने चावल पहले ही भीगो दिए थे इस पर पापा ने गुस्सा किया  माता जी तो पहले कभी नही भिगोते थे . फिर पापा ने कूकर माँगा.मम्मी के कहने पर कि पतीले मे ज्यादा खिले- खिले बनेगें पर पापा तो पापा ठहरे. जो बोल दिया सो बोल दिया. वैसे आप यह मत समझना कि मैं मम्मी की चमची हूँ. मैं सच बात का ही साथ देती हूँ.फिर पापा ने देसी घी लिया और खूब सारा उसमे डाल दिया ताकि मटर अच्छी तरह भुन जाए इतने मे मैच मे छ्क्का लगा जल्दी जल्दी मैच देखने के चक्कर मे उन्होंने मसाला भी बिना नापे डाल दिया.मैं और मम्मी चुपचाप पापा का काम देखते रहे.मम्मी तो चुपचाप गदॅन हिलाती रही और मै वँहा स्लैब पर बैठी  पापा का लाईव टेलिकास्ट देख रही थी. सच. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. उधर पापा ने मैच देखने के चक्कर मे मटर मे भी नुक्स निकालने शुरु कर दिए कि मटर तो मीठी है ही नही चावल कैसे अच्छा बनेगा. मैच मे फिर एक खिलाडी आउट हो गया.तभी दरवाजे पर घंटी बजी.मम्मी बाहर जाने को हुए तो पापा ने मना कर दिया कि पहले मसाला भुनने दो फिर जाना.मै उतर के जाने को हुई तो मुझे भी डाटं पड गई कि बार बार आने जाने से उनका ध्यान हट रहा है.तभी फिर एक खिलाडी आउट हो गया.बाहर फिर से घटीं बजी.उधर पापा से कूकर का ढ्क्कन बन्द ही नही हो रहा था. पापा बोले कि कूकर ही खराब है. मम्मी ने गदॅन मटकाते अगले ही पल उसे बन्द कर दिया. इस पर भी पापा बोलने से नही चूके कि उफ  आज कल के ये बरतन और कुरते से हाथ पोंछ कर बैठक मे चले गए.दुबारा घंटी बजने पर मैं बाहर भागी.
अरे. सामने दादी खडी थीं.उन्होने बताया कि शहर आने का एकदम से मन बना और वो आ गई.सुबह ही मटर के चावल बनाए थे.तो वो भी ले आई.
 दादी ने पानी पीया ही था कि कूकर की सीटी भी बज गई.पापा ने एलान कर दिया था कि कूकर वो ही खोलेगे.दादी की मौजूदगी मे उसे खोला गया.पर. पर  ...यह समझ ही नही आ रहा था कि यह चावल है या खिचडी.मटर के चावलो का पूरी तरह से हलवा बन चुका था.
पापा मैच देखते हुए धनिए की चटनी के साथ मजे से दादी वाले चावल खा रहे थे और हम. हम  मटर वाली खिचडी. नाक मुहं बना कर. इसी बीच मे भारत मैच जीत गया.पर पापा खुश होकर बोले कि रात को वो आलू की परौठी बना कर खिलाएगे.यह सुनते ही मैं और मम्मी कान पर हाथ रख कर जोर से चिल्लाए.नही.अब और  नही. यह सब देख कर दादी ठहाका लगा कर हँस दी और वो किस्सा सुनाने लगी जब मेरे दादा जी ने पहली और शायद आखिरी बार  गुड के चावल बनाए थे ..
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा

माँ

               माँ
माँ को है
विरह वेदना और आभास कसक का
ठिठुर रही थी वो पर
कबंल ना किसी ने उडाया
चिंतित थी वो पर
मर्म किसी ने ना जाना
बीमार थी वो पर
बालो को ना किसी ने सहलाया
सूई लगी उसे पर
नम ना हुए किसी के नयना
चप्पल टूटी उसकी पर
मिला ना बाँहो का सहारा
कहना था बहुत कुछ उसे
पर ना था कोई सुनने वाला
भूखी थी वो पर
खिलाया ना किसी ने निवाला
समय ही तो है उसके पास पर
उसके लिए समय नही किसी के पास
क्योंकि
वो तो माँ है माँ
और
माँ तो मूरत है  
प्यार की, दुलार की, ममता की ठंडी छावँ की,
लेकिन
कही ना कही  उसमे भी है
विरह, वेदना, तडप और आभास कसक का
शायद माँ को आज भी है इंतजार अपनो की झलक का

मोनिका गुप्ता    
सिरसा    
हरियाणा

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

रविवार, 2 मई 2010

मुझे पहचानो ...

 मुझे पहचानो ...                  
मैं हू कौन.. जी हाँ, क्या आप जानते हैं कि मै हूँ कौन... चलिए मैं हिंट देता हूँ.. सबसे पहले मै यह बता दू कि मैं आम आदमी नही हूँ. मुझसे मिलने के लिए लोगो की भीड लगी रहती है पर मै जिला उपायुक्त नही हूँ. मेरे आगे पीछे 4-4 अंगरक्षक घूमते हैं पर मैं पुलिस कप्तान भी नही हूँ. मेरे पीछे दिन रात जनता पडी रहती है पर मैं कोई स्वामी जी या कही का महाराज भी नही हूँ.
मेरे बच्चे स्कूल मे प्रथम आते हैं और सभी स्कूल के प्रोग्रामो मे हिस्सा लेते हैं सारा स्टाफ मेरा सम्मान करता है पर मै स्कूल का प्रिंसीपल भी नही हूँ.
जिले मे कोई भी कार्यक्रम होता है तो मुझे जरुर बुलाया जाता है. मेरे साथ फोटो खिचवाई जाती है. रिबन कट्वाया जाता है ताली बजा कर स्वागत किया जाता है मेरी बातो को समाचार पत्र मे मुख्य स्थान दिया जाता है पर मै किसी समाचार पत्र का सम्पादक भी नही हू.
मेरे पास सभी खास अफसरो के फोन आते रहते है या मै जब भी फोन करता हू तो वो तुरंत पहचान जाते हैं और मुझे और मेरे परिवार को भोजन पर बुलाते हैं.
मुझे देख कर कौन कितना जला भुना या कितना खुश हुआ मैं सब जानता हूँ. आप सोच रहे होगें कि मैं यकीनन ही कोई पागल हू जो ऐसे ही बात किए जा रहा है तो जनाब, मै बताता हू कि मै कौन हूँ. 
मै हूँ चमचा”. एक दम चालू चक्रम चमचा. लोगो की चापलूसी करने मे सबसे आगे. थूक कर चाट्ने मे सबसे आगे. शहर मे कौन बडा अफसर है कौन नेता है उनकी पत्नी, बच्चे और तो और उनके कुतॆ का नाम उसकी पसंद ना पसंद सभी मुझे पता है. सभी को खुश रखना मेरा परम धर्म है तभी तो लोग मुझे फोन करके मुझसे मिलने को बैचेन रहते हैं क्योकि वो जानते है कि मै  ही उनके काम करवा सकता हूँ.
मै भी महान हूँ पता है जब मेरा मन होता है तब फोन उठाता हूँ
जब मन नही होता तब फोन उठाता ही नही चाहे कितनी घंटी बजती रहे. मै जानता हूँ कि जिसने मेरे पास चक्कर लगाने है वो तो लगाएगा ही चाहे घंटो ही इंतजार ही क्यो ना करना पडे
ना सिर्फ बडे लोगो से बलिक मीडिया से भी मै बना कर रखता हूँ. समय समय पर मैं प्रैस कांफ्रैस करता रहता हूँ ताकि वो सैट रहे. लोगो के काम के लिए लंबी कतार मेरे घर या दफतर मे कभी भी देखी जा सकती है. पता है मै गिरगिट की तरह रंग बदलने मे माहिर हूँ. कल जो मेरा जानी दुश्मन था आज वो मेरे साथ बैठ कर चाय पी रहा होता है.या आज मै जिसके संग चाय पी रहा हू वो कल मेरा जानी दुश्मन बन सकता है  काम निकलवाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ किसी भी हद तक जा सकता हूँ. बस अधिकारी लोग खुश रहने चाहिए.  
ये चमचागिरि मुझे अपने बडो से विरासत मे नही मिली बलिक समय और हालात को देखते हुए मुझे सीखनी पडी. मै जानता हूँ कि भले ही लोग मुझे पीठ पीछे गाली देते होगें मुझे अकडू की उपाधि भी दे दी होगी पर मुझे कोई असर नही. मै आज जो भी हूँ बहुत खुश हूँ.
तो दोस्तो, अगर आप भी खुश रहना चाहते हैं तो एक बार चमचागिरी के मैदान मे आ जाओ यकीन मानो एक बार समय तो लगेगा, अजीब भी लगेगा पर कुछ समय बाद आपको खुद ही अच्छा लगने लगेगा.
सच पूछो तो आज का समय शराफत, महेनत और ईमानदारी का नही है क्योकि उनकी कोई कद्र ही नही है या ये कहे कि सबसे ज्यादा पिसता ही शरीफ आदमी है इसलिए तो मुझे भी चमचागिरी को अपनाना पडा. तो अगर आप सुखी रहना चाहते है अपने सारे काम भी निकलवाना चाहते हैं तो बनावट और दिखावे की दुनिया मे आपका स्वागत है बिना देरी किए तुरंत आए और अधिक जानकारी के लिए शहर के किसी भी बडे अफसर से आप मेरा पता पूछ सकते हैं....
मोनिका गुप्ता    
सिरसा    
हरियाणा

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

बहुत टेंशन है ..

                                                            बहुत टेंशन है ..

सच, बहुत टेंशन है. कही आप यह तो नहीं सोच रहे कि IPL3 की वजह से मुझे टेंशन है अरे नहीं हार जीत से मेरा क्या लेना देना. पर भाई जिसने गलत काम किया है उसे तो लपेटे में आज नही तो कल आना ही चाहिए. चाहे मंत्री Shashi tharoor हो या Modi. अब वो तो उनके ऊपर है कि वो फ़िक्र को धुंए में उड़ाते है या... तो कही आप यह तो नहीं सोच रहे कि Sania और Shoaib की शादी के बाद जो दुबारा चक्कर हो गया कि उनके खिलाफ केस हो गया भाई सुनो मेरी बात, मै उससे भी दुखी नही हूँ . नहीं, भई, नहीं, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना . पर क्या बताँऊ, फिर वही टेंशन बहुत है. एक मिनट ठहरो, कही आप भारी बरसात का तो सोचने नही लगे ना जोकि भविष्यवाणी मौसम विभाग ने की है. हे भगवान ,काश वो सच हो जाए पर मौसम विभाग के ऐसे भाग्य कहा. वो जो कहते है वैसा होता थोड़े ही ना है. मैं समझ गयी कि अब आप जरुर यह सोच रहे हैं कि मै इसलिए टेंशन मे हूँ क्योकि Swami Nityananda पकड़ में आ गए हैं उनका क्या होगा. भई, होगा क्या- Meadia को breaking news का मसाला मिलेगा. अखबारो की बनेगी head lines पर इससे मेरी टेंशन कम तो नहीं होगी ना.

हद है मेरे से तो आप पूछ ही नहीं रहे है बस अपनी अपनी ही सोच लगा रहे है. मै यह बता रही थी कि आज ..लो आप फिर सोचने लगे कि मै Ram Gopal Verma की फिल्म फूंक २ से डर गई. क्यों भई, जब एक आदमी अकेले हाल मे बैठ कर पूरी फिल्म देख सकता है और ५ लाख कमा सकता है तो मै क्यों डरू .बताओ मैं किसलिए डरु. अब आप मेरी सुनेगे तो मै बताती हूं. असल मे हुआ ये कि मै बाजार गई थी तरबूज खरीदने .मैने 4 किलो का तरबूज 16 रुपए किलो के भाव से खरीद लिया.अब जब मैने उसे तरबूज वाले को इसे काट कर टेस्ट करवाने को कहा तो उसने पूरे विश्वास से कहा कि गारंटी है. मीठा ना निकले तो वापिस दे जाना और  पैसे ले जाना. उसके पास रश इतना था कि मै कुछ बोल नही पाई.इतने भारी को उठा कर भी लाई और अब घर लाकर काटा है तो वो एकदम फीका है अंदर से लाल भी नही है. टेंशन इस बात की है कि परिवार को क्या कहूंगी क्योकि मैं चैलेज लेकर गई थी कि एकदम मीठा तरबूज लेकर आऊँगी. इतने भारी को दुबारा उठा कर वापिस भी कैसे कर के आँऊ, पता नही. अब वो तरबूज वाला वँहा बैठा भी होगा या नही.देखा मुझे इतनी टेंशन हो रही है और आप  है  ना क्या क्या सोचे जा हैं.

मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

मदर्स डे ...... मेरी नजर में

मदर्स डे ...... मेरी नजर में
 
मदर्स डे यानि माँ का दिन. माँ, मम्मी, माताजी, आई या मामॅ नाम चाहे कितने ही हो पर नामो मे छिपा  प्यार एक ही है. माँ के आचँल मे है 100% ममता ही ममता. हमारी कोई परेशानी उनसे छिपी नही रह्ती. ना जाने वो बिना बताए अपने आप कैसे जान जाती हैं. माँ का नाम लेते ही आँखो मे अलग सी चमक आ जाती है. अपनी बात शुरु करने से पहले मैं  उन के बारे मे कहना चाहूग़ी कि उसको नही देखा हमने कभी पर उसकी जरुरत क्या होगी, ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी है ना  मैं सही कह रही हूँ ना.
सच, भगवान का दूसरा नाम ही है माँ. हर जगह तो भगवान का जाना सम्भव नही है इसलिए उसने माँ को बना दिया.बेशक समय कितना ही बदल जाए पर हमारे देश के  संस्कार ही ऐसे है कि माँ का प्यार ना कभी बदला है ना कभी बदलेगा.
 बताने की बाते तो ढेर सी है पर मैं दो बाते ही बता पाऊँगी. बचपन मे मुझे राजमाह चावल बहुत पसंद थे. पसंद तो अब भी है पर मैं तब की बात बता रही हूँ कि जब   मैं और मेरा भाई स्कूल से लौट कर आते थे और पता चलता था कि आज राजमाह चावल बने हुए है तो मै सारे के सारे खा जाती थी यानि मम्मी के हिस्से के भी.पर मम्मी कभी नही कहती थी कि यह चावल उनके हिस्से के है वो ना सिर्फ खुशी खुशी खिलाती बलिक बालो मे हाथ भी फेर कर खुश होती   रहती. तब मै यही सोचती थी कि जब मैं भी बडी हो जाऊगी तब मैं अपने हिस्से के चावल खुद ही खाऊगी. बच्चो को नही दूगी पर माँ बनने के बाद अहसास हुआ कि सब कुछ तो बच्चो का ही है बच्चो ने खा लिया मानो माँ ने खा लिया. सच पूछो तो बच्चो को खुश देखकर, बच्चो की खुशी मे इतनी खुशी मिलती है कि शब्दो मे बताई नही जा सकती.यह बात माँ बनने के बाद ही जानी.
मुझे याद है कि जब मै पहली बार घर से बाहर होस्ट्ल पढने गई.  तब हमारी मैस मे सब्जी के तो डोगे मेज पर  रख देते और चपाती का एक एक से पूछ्ते थे कि लेनी है या नही. पता है घर मे तो आद्त थी कि मना करने के बाद भी एक चपाती तो आएगी ही आएगी क्योकि मम्मी कहती यह छोटी सी चपाती  तेरे लिए ही बनी है.अब जब मैस वाला भैया पूछ्ता कि और चाहिए तो मै यह सोच कर मना कर देती कि एक तो आएगी ही आएगी. पर मना करने के बाद वो भला क्यो चपाती देगा. होस्ट्ल मे शुरु मे तो बहुत अजीब लगा पर धीरे धीरे आद्त पड गई. बात खाने की नही है बात उस प्यार की है जो हमे मिला जो ऐसी यादे छोड गया जो हमे जीवन भर नही भूलेगी.वही आज हम अपने बच्चो मे देख रहे हैं कल को जब वो बडे हो जाएगे वही बात फिर से दोहराई जाएगी.
सच पूछो तो ऐसी ममतामयी माँ से बार बार लिपट्ने का मन करता है. मन करता है कि फिर से बच्चे बन जाए और माँ के आचलँ से सारी दुनिया देखें जैसे बचपन मे देखते थे. हैप्पी मदर्स डे.  
मोनिका गुप्ता 
सिरसा 
हरियाणा  
Sirsa
Haryana

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

सुख बिजली जाने का

सुख बिजली जाने का...

अरे भाई, हैरान होने की कोई बात नही है लगातार लगते कटो से तो मैने यही नतीजा निकाला है कि बिजली जाने के तो सुख ही सुख है.सबसे पहले तो समाज की तरक्की मे हमारा योगदान है. भई, अर्थ आवर मे 100% हमारा योगदान है क्योकि बिजली रहती ही नही है.तो हुआ ना हमारा नाम कि फलां लोगो का सबसे ज्यादा योगदान है बिजली बचाओ मे.
चलो अब सुनो, बिजली नही तो बिल का खर्चा भी ना के बराबर. शापिंग के रुपये आराम से निकल सकते हैं. बूढे लोगो के लिए तो फायदा ही फायदा है भई हाथ की कसरत हो जाती है. हाथ का पखां करने से जोडो के दर्द मे जो आराम मिलता है. घरो मे चोरी कम होती है भई, बिजली ना होने की वजह से नींद ही नही आती या खुदा ना करे कि सच मे, चोर आ भी गया और अचानक लाईट आ गई तो आप तो हीरो बन जाऐगे चोर को जो पकड्वा देगे, है ना समाचार पत्रो मे आपकी फोटो आएग़ी वो अलग.
अच्छा, घर मे बिजली ना रहने से लडाई ना के बराबर होती है. भई कूलर या पंखे मे तो अकसर आवाज दब जाती है पर लाईट ना होने पर खुल कर आवाज बाहर तक जाती है. धीमी आवाज मे तो लड्ने मे मजा आता नही इसलिए लडाई कैंसिल करनी पड्ती है. और पता है सास बहू के झगडे  कम हो जाते हैं दोनो बजाय एक दूसरे को कोसने के बिजली विभाग को कोसती हैं इससे मन की भडास भी निकल जाती है और मन को शांति भी मिलती है.पता है बिजली जाने से दोस्ती  भी हो जाती है. अब लाईट ना होने पर आप घर से बाहर निकलेगे आपके हाथ मे रुमाल भी होगा पसीना पोछ्ने के लिए. सामने से कोई सुन्दर कन्या आ रही होगी तो आप जान बूझ कर अपना रुमाल गिरा कर कहेगे लगता है मैडम, आपका रुमाल गिर गया है यह सुन कर वो आपकी तरफ देखेगी, मुस्कुराएगी और दोस्ती हो जाएगी.
एक और जबरदस्त फायदा है कि आप विरह के गीत, कविताए लिखने लगेगें क्योकि आप बिजली को हर वक्त याद करेगें जब वो नही आएगी तो आपके मन मे ढेरो विचार उठने लगेगें. यकीन मानो आप उस समय विरह की ऐसी ऐसी कविता या लेख लिख सकते हैं कि अच्छे अच्छो की छुट्टी हो जाएगी.एक और सुख तो मै बताना ही भूल गई कि आप जोशीले भी बन सकते है बिजली घर मे ताला लगाना, तोड फोड करना, जलूस की अगवाई तभी तो करेगे जब आपमे गुस्सा भरा होगा और वो गुस्सा सिवाय बिजली विभाग  के आपको कोई दिला सकता है सवाल ही पैदा नही होता .बाते और भी है बताने की पर हमारे यहाँ 5घंटे से लाईट गई हुई है और अब इंवरटर मे लाल लाईट जलने लगी है. बिजली विभाग मे मोबाईल  कर रही हूँ पर कोई फोन ही नही उठा रहा. गुस्से मे मेरा रक्तचाप बढ रहा है डाक्टर को फोन किया तो वो बोले तुरंत आ जाओ. अब आँटो का खर्चा, डाक्टर की फीस, दवाईयो का खर्चा सबके फायदे ही फायदे हैं और कितने सुख गिनवाऊँ बिजली जाने के.
मोनिका गुप्ता
सिरसा  हरियाणा    
Sirsa 
Haryana

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

स्वच्छ्ता अभियान ...नया साल नया सवेरा

स्वच्छ्ता अभियान ...नया साल नया सवेरा
सडक पर चलते हमे ऐसे बहुत पढे लिखे मिल जाएगे. जो सड्क को ना सिर्फ कूडादान समझते हैं बलिक उसे चलता फिरता शौचालय भी बना कर रखा है. अपना घर साफ रहना चाहिए बाकी से क्या मतलब. बस यही सोच खराब कर रही है. हम सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल कर निशचिंत होकर बैठ जाते हैं  और दिन रात उसे ही कोसते है खुद कुछ नही करना चाह्ते. सरकार भी कहा तक देखेगी. वो तो स्कीम लागू कर देती है. अब उसका अनुकरण तो जनता को ही करना है.खैर, मैं बात कर रही हूँ सड्क को शौचालय समझने की. एक समय जरुर ऐसा था जब मैला ढोया जाता था फिर समय बदला और बहुत तेजी से बदला.हालकि कुछ राज्यो मे आज भी ढोया जाता होगा पर मैं अपने अनुभव से बता रही हूँ. हरियाणा के सिरसा के सभी 333 गावो मे मुझे स्वच्छ्ता से सम्बधित कुछ ऐसा कुछ देखने को मिला जिस पर विश्वास करना नामुमकिन था. इतना जोश इतनी जागरुकता.

बात 2007-08 की है .देश के अन्य राज्यो की तरह हमारे सिरसा मे सम्पूर्ण  स्वच्छ्ता अभियान चला. उस समय जिला के अतिरिक्त उपायुक्त ने गाँव के सरपंचो, पंचो, आगंवाडी वर्कर, स्कूली अध्यापक व अन्यो को बुला कर एक बैठक ली. उसमे पहले लोगो  के मन को ट्टोला गया .उनसे जानने की कोशिश की गई कि गावँ के खेतो मे लोग शौच के लिए कितने जाते हैं. जवाब मिला कि ज्यादातर सभी जाते है. पुन; पूछ्ने पर उन्होने बताया कि अच्छा तो नही लगता पर चारा भी तो कोई नही है बरसो बरस से चली आ रही आदत को बदलना नामुमकिन है. कोई क्यो बदलेगा अपनी आदत. बस तब उनकी सारी बाते जान कर उन् लोगो को बाहर शौच जाने से होने वाली बीमारिया बताई गई. महिलाओ को शर्म का अहसास करवाया गया कि जब वो खुले मे शौच जाती है तो ना जाने कितने लोगो की गंदी निगाहो का सामना करना पडता होगा.उस मीटिंग मे आए लोगो को सारी बाते सुन कर दिल से बहुत मह्सूस हुआ कि  वाकी मे वो कितनी गंदगी मे रह रहे है जो शौच वो खेतो मे जाकर करते हैं वहाँ से मक्खिँया वापिस घरो मे आकर दुबारा गंदगी फैलाती हैं यानि आप शौच ही खा रहे है वो भी अपना नही बलिक दूसरो का भी. इन सभी बाते को सुनकर लोगो को इतनी घिन्न आई कि उन लोगो ने यह फैसला कर लिया कि अब ना तो वो बाहर जाएगे बलिक और लोगो को भी समझाएगे कि घरो मे ही शौचघर बनवा कर उसमे ही जाना चाहिए.
सभी गावँवासी ततकालीन अतिरिक्त उपायुक्त श्री युधबीर सिह ख्यालिया की बातो से इस कदर प्रभावित हुए कि एक होड सी लग गई कि हम अपने अपने गाँव को खुले मे शौच मुक्त बना कर ही दम लेगें. सभी 333 गावो मे तो मानो एक लहर सी चल पडी. जय स्वच्छता के  नारो से सारा सिरसा गूजँ उठा. सारा गावँ मानो एक परिवार बन गया. इसी बीच जय स्वच्छ्ता समीति का गठ्न करके उन्हे गावँ गावँ भेजा गया. लोगो मे जागरुक्ता पैदा की गई. गांव के बच्चो और महिलाओ को इस अभियान से जोड कर निगरानी कमेटी का सदस्य बना लिया गया. सुबह शाम वो लोग  खुद निगरानी कर के बाहर शौच जाने वाले लोगो को हाथ जोड्कर प्यार से समझाने लगे. ऐसी बात नही थी कि सब आराम से होता चला गया बहुत जिद्दी लोग भी मिले जिन्होने कहा कि वो तो बाहर ही शौच के लिए ही जाएगे घर मे नही जाएगे. पर जब सभी गावं के लोगो ने उन्हे वास्ता दिया और जय स्व्च्छ्ता टीम ने समझाया तो बद्लाव आना शुरु हो गया. चाहे कितना भी गरीब घर क्यो ना हो. सभी ने शौचालय बनाने शुरु कर दिए. धीरे धीरे चारो तरफ वातावरण साफ होता चला गया. सिर्फ तीन महीनो  मे गाँव को लोगो ने वो कर दिखाया जो सम्भव ही नही था 333 गावँ खुले मे शौच मुक्त हो गए. इस अभियान मे बच्चे, महिलांए और सभी लोगो ने योगदान दिया तभी यह सफल हो पाया.
आज गाँव के लोग मानते हैं कि जहाँ पहले  नाक पर कपडा रख कर गुजरना पड्ता था  आज वही  सुबह ताजी हवा मे सैर के लिए लोग देखे जा सकते हैं. इस अभियान मे  हरियाणा का सिरसा पूरे भारत मे प्रथम रहा. कुल 333 मे से 260 को निर्मल ग्राम पुरुस्कार मिले. सन 2009 मे इसका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड मे लिखा गया. महामहिम राष्ट्र्पति महोदया ने हिसार मे इनाम बाँढे. स्व्च्छ्ता की लहर का एक उदाहरण तब देखने को मिला जब 26 जनवरी 2010 मे  सिरसा के ही गाँव कालुआना को स्वच्छ्ता के मामले मे प्रदेश भर मे प्रथम घोषित किया गया है जिसने सरकार से 20 लाख का पुरुस्कार पाया है यानि सफाई की यह अलख लगातार जल रही है और अपनी रोशनी से औरो को प्रेरणा दे रही है. है ना हैरानी की बात. इतनी जागरुकता. विश्वास करना मुश्किल है.
पर आज सिरसा के सभी गाँव के लोगो मे पूरी जागरुकता है वो जान चुके हैं कि स्व्च्छ्ता कितनी जरुरी है. गाव की बहन बेटिया खुश है कि अब लोगो की गंदी नजरो से दो चार नही होना पड्ता. बच्चे खुश है कि अब बीमारिँया ही खत्म हो गई हैं. अब वो और भी स्व्च्छता का ध्यान रखने लगे है. जैसा कि गली मे फालतू पानी ना बहे. पीने के पानी का साफ हो, सोख्ता गड्डे बनवाना, हाथ साफ रखना और हाथ धो कर पानी पीना आदि.
इसमे कोई शक नही कि देश मे एक समय ऐसा था जब गांव मे सिर पर मैला ढोया जाता था. पर यहाँ  आज इतनी जागरुक्ता आ गई है कि लोग स्वच्छ् रहना पसंद करने लगे हैं इस अभियान ने यह दिखा दिया कि गांव के लोग भी किसी से कम नही है बस उन्हे एक रास्ता दिखाने वाला चाहिए. अगर यही सोच हम शहर वालो मे भी हो जाए तो क्या बात है क्योकि पढे लिखे तो हम उनसे ज्यादा ही है शायद. काश ऐसा हो जाए कि सभी अपने अपने अधिकारो को, कर्तव्यो को जरा भी समझ ले  हाथ पर हाथ धरे ना बैठे रहे. फिर तो शायद देश का नक्शा बदलने मे जरा भी समय नही लगेगी.
जय स्वच्छ्ता
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

वो पहला कदम .. वो पहली मुस्कान ..

वो पहला कदम .. वो पहली मुस्कान ..
याद है जब आपके बच्चे ने पहला कदम जमीन पर रखा था . यकीनन आप उसे कैसे भूल सकते हैं क्योकि वो तो आपकी जिन्दगी का सबसे सुनहरा अनुभव रहा होगा .उस समय उसकी ना सिर्फ तस्वीर खिंची होगी बलिक् ना जाने कितने दोस्तो और रिश्तेदारो को बताया होगा . ना सिर्फ  आखों मे खुशी के आसूं आए होगे बलिक आपका मन किया होगा कि काश यह अमूल्य क्षण हमेशा के लिए आखों मे बस जाए .तो फिर आज क्या हो गया . हैरान मत होईए .मै आपसे ही कह रही हूँ . उस दिन के बाद से 15-16 साल बाद जब आज आपका बच्चा घर से  बाहर पढ्ने जा रहा है तो इतना उदास क्यो हैं आप क्यो रो रो कर अपने साथ साथ अन्य घर वालो को भी उदास कर रहे हैं .यही तो ही जीवन है .मन तो आपको तभी पक्का कर लेना चाहिए था जब उसने पहला कदम जमीन पर रखा था .वही से उसके जीवन का नया अध्याय आरम्भ हो गया था .आज तो उसी अध्याय की एक और कडी जुड्ने जा रही है आज वो पढ्ने जा रहा है कल को वो कमाने जाएगा .जीवन का पहिया ऐसे ही चलता रहेगा .आज जरुरत है खुद का मन पक्का करने की . आपने सुना होगा कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड्ता है . एक सपना जो आपने देखा होगा कि वो बडा होकर ये बनेगा .  वो बनेगा .  वो पूरा करने के लिए तो अच्छी शिक्षा जरुरी हो ही जाती है और आप तो जानते ही है कि छोटे शहरो मे इतनी सुविधा उपलब्ध ही नही होती . तो क्या आप अपना सपना अधूरा ही रहने देगे . उसमे कितना दम है कितना जोश है उसे साबित तो करने दो .लेकिन उसके  जाने के नाम से ही आपका रो कर इतना बुरा हाल है  चलो ठीक है  आपका मन नही है तो मत भेजो बाहर पढाने .  घर पर रह कर करने दो पढाई .तब यकीन मानो एक दिन आप खुद ही कह उठेगें कि आपने गलती की  . मै जो बात को इतना घुमा फिरा कर कह रही  हूँ  उसके पीछे बस यही कहना चाह रही हूँ कि अब समय है मन को पक्का करने का . ना कि उदास होने का . आमतौर पर मम्मी  लोग ज्यादा मन से लगा लेती हैं कि मेरा बच्चा कैसे रहेगा , कैसे खाएगा , कौन ख्याल रखेगा , उसने तो कभी पानी का गिलास तक लेकर नही पिया  वगैरहा वगैरहा . पर यकीन मानो आज बच्चे बहुत समझदार हो गए हैं वो अपना ख्याल अच्छी तरह से रख सकते हैं आप उनकी हिम्मत  तो बनिए . आपको पता है कि  उदास तो पापा लोग भी होते है पर वो दिखाते नही हैं बस समझ लो उनकी तरह  मन पक्का करके अपने जिगर के टुकडे को वही मुस्कान देनी है जो  उसके पहला कदम रखते हुए आपने दी थी .मन उदास भी होगा , आसूँ भी आएगे पर उसे दिखाना नही है . उसे बस मजबूती देनी है कि जिस विश्वास से वो उसे बाहर भेज रहे है वो सपना पूरा कर के ही लौटे .फिर हम देखेगें आपके चहेरे की वो रौनक .
मोनिका गुप्ता
सिरसा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

अतिथि कब आओगें

अतिथि कब आओगें
सुन कर बहुत अजीब लग रहा होगा कि कब आओगे...पर यह सही और सच लिखा है ..आमतौर पर हम किसी के आने से खुश नही होते .. इसके ढेर सारे कारण है .. सारे तो बताने सम्भव नही पर ...कुछ इस प्रकार हैं .. एक तो घर की दिनचर्या बिगड जाती है .. अगर कामकाजी महिला है तो डबल दिक्कत ...घर पर अगर ज्यादा छोटे बच्चे हैं तो तीन गुणी दिक्कत और घर मे कोई बीमार है तो चार गुणा दिक्कत .. महेमान आने पर स्टोर से बर्तनो का सैट निकालना पडता है .. बिस्तर निकालने पड्ते है ..नमकीन मीठा और शरबत ज्यादा मगँवा कर रखना पड्ता है..इत्यादि .. ..इत्यादि इत्यादि ....अब भाई ..इतने नुकसान है तो फायदा क्या है..
.तो जनाब फायदा यह है कि बहुत दिनो से गंदे घर की सफाई हो जाती है रसोई घर साफ हो जाता है..स्नान घर मे पिचके हुए 3-4 टूथ्पेस्ट् ..,शैम्पू के 5-7 रैपर और छोटे छोटे साबुन और साबुन दानी तुरंत साफ कर दी जाती है ..अलमारी भी साफ की जाती है कि कही महेमान गलती से खोल ना ले .. बैठक के कमरो की भी सफाई की जाती है सोफे के गदे के नीचे जो अखबार बिल या फिल्मी किताबे पडी होती हैं साफ की जाती हैं .. आगंन के गमलो मे गुडाई की जाती है .. नए पौधे लगाए जाते हैं मानो सारे पृयावरण की हमे ही चिंता है ..खुद को घर एक दम साफ साफ लगता है ..हाँ .. वो बात अलग है कि जब महेमान वापिसी की टिकट साथ लेकर आता है तो मन खुशी से नाच उठता है लेकिन जब टिकट भी नही हो और वो जम ही जाए तो मन जाने अनजाने बोल उठता है .. कब जाओगे अतिथि ...
आप मेरी बात से सहमत है या नही .. जरुर बताना ..जल्दी बताना .. क्योकि गरमी की छुट्रटी आ रही हैं तैयारी  भी तो करनी होगी .. है ना ..
मोनिका गुप्ता 

Sirsa
Haryana

गाली प्रधान समाज

गाली प्रधान समाज
जहाँ मुझे लिखने मे झिझक महसूस हो रही है वही दूसरी ओर जिस प्रवाह से ... खुले आम .. अपशब्दो का प्रयोग हो रहा है कि शर्म से गर्दन झुक रही है .. बडे तो बडे आजकल तो बच्चे भी खुल कर इनका प्रयोग करते हैं ... जहाँ बच्चे घर मे पिता को सुन कर प्रभावित होते हैं वही सिनेमा ने भी कोई कसर नही छोडी ... रही सही कसर पूरी  कर दी टी .वी ने ...कहाँ तक बचे इन से ..और हमारे नेताओ की तो क्या कहिए ..खुले आम गाली गलौच कर के ना जाने वो आने  वाली पीढी पर किस तरह के संस्कार डालना चाहती है ..
आमतौर पर आजकल इसका चलन इतना बढ गया है कि बिना गाली दिए तो बात ही अधूरी लगती है तो क्या इसका कारण हमारी टेंशन .. हमारा तनाव है जो हमे गलत बोलने पर मजबूर करता है या फिर अब हम इसके अभयस्त् हो चुके हैं ..हमारा पसंदीदा डायलाग .. जब मी मेट मे हीरोईन फोन पर जब गाली देती है ..  बन चुका है और तो और माता पिता अपने दोस्तो के बीच बच्चो को  उसे सुनाने को कहते है ...
बताओ अब उम्मीद ही क्या की जा सकती है ..
गाली प्रधान समाज को कैसे रोका जाए ताकि आने वाली पीढी पर इसका असर ना पडे ....क्या पहल खुद  अपने परिवार से ही करनी होगी .. खुद ना तो बोलना होगा और ना ही सुनना होगा ... और जो भी गाली देकर बात करता हो उसकी सगंत छोड्नी होगी .. जरा सोचिए . मामला बहुत गम्भीर है . आपके क्या विचार हैं ...
मोनिका गुप्ता
सिरसा 
Sirsa
Haryana

मोबाईल ... मस्ती या मुसीबत .....

मोबाईल ... मस्ती या मुसीबत .....
आज से लगभग 20-22 साल पहले सुना था कि हम  घर के बाहर चलते –फिरते या सफर करते हुए भी  फोन पर बात कर सकते है सुन कर बहुत हैरानी हुई थी  क्योकि उस जमाने मे लैंड लाईन  ही हुआ करते थे और उसका मतलब था कि एक ही जगह खडे होकर बात करना . तब लगा कि क्या ऐसा सम्भव  होगा या ऐसी चीज हमारे भी हाथ मे आएगी क्योकि उस समय  लैंड लाईन का  ही जमाना था  हाँ ,कई जगहो पर  फोन की तार जरुर लंबी  हुआ करती थी कि ज्यादा से ज्यादा  हम उसे एक  कमरे से दूसरे कमरे तक ले जा सकते थे .वैसे आमतौर पर यह फोन द्फ्तर या बैठक की ही शोभा हुआ करता था  मुझे याद है  उस समय घर मे फोन होना बहुत इज्जत वाली बात थी .पूरी कालोनी मे एक या दो फोन होना बहुत बडी बात हुआ करती थी . उस आदमी का  समाज मे एक अलग ही रुतबा होता था . उनके फोन की महता घर के किसी प्रौढ आदमी से कम नही थी . ना सिर्फ फोन का  खास ख्याल रखा जाता था बलिक उसकी झाड पोछ के लिए एक अलग ही साफ सुथरा कपडा इस्तेमाल मे लाया जाता था .
समय बीता .आज हाल देख ही रहे है . क्या जमादार , क्या सब्जी वाला , क्या अखबार वाला , सभी आम  और खास लोगो की जरुरत बन चुका है ये मोबाईल .समय इतना बदल गया है कि जिसके पास मोबाईल नही है उसे बहुत अजीब नजरो से देखा जाता है . घर मे लैंड लाईन तो है पर ज्यादातर नेट के लिए ही रखा हुआ है बाते तो उस पर बहुत कम ही होती हैं क्योकि लोग मोबाईल पर ही बात करना ज्यादा पसंद करते हैं और हो भी क्यो ना  . फायदे तो बहुत ही है हम कही भी ,कभी भी, किसी से भी बात कर सकते हैं . चिंता कम हो गई है सफर मे तो इसका खास सहारा होता है कौन घर कब पहुँच रहा है या दफ्तर कब तक  आ जाएगा हर मिनट का हिसाब होता है तो आराम हुआ ना  . मस्ती ही मस्ती  हुई  मुसीबत कहाँ हुई . पर जनाब .बताती हूँ .बताती हूँ.
अक्सर क्या होता है फोन नम्बर तो लोग हमे दे देते हैं लेकिन  काम पडने पर वो फोन ही नही उठाते और मिलने पर बोल देते हैं कि मै व्यस्त  था या झूठ बोल देते है कि मीटिंग या आउट आफ स्टेशन था . लो कर लो बात . पर आप कुछ नही कर सकते .
फिर तंग करने वालो की भी कोई कमी नही है खास कर लड्को को किसी लड्की का नम्बर मिला नही कि आधी आधी रात को भी बेवजह तंग करना शुरु कर देते हैं उलटॆ सीधे  एस एम एस भेजते है  उनके घर मे कितनी टेंशन हो जाती होगी सोचा जा सकता है अगर इसकी शिकायत करे या एफ आई आर करे  तो मुसीबत क्योकि यही लगता है कि लड्की का चरित्र ही ठीक नही होगा .इस पर माँ - बाप भी लड्की को मोबाईल देते हुए कतराते है . कोई महाशय ऐसे होते है कि फोन मिलाते ही काट देते है ताकि उसकी काल के पैसे ही ना लगे  . कुछ लोग ऐसे होते है कि घंटी पर घंटी दिए जाते है अगला चाहे वाकई मे व्यस्त हो . कुछ लोग तो और भी कमाल हैं जिस को फोन वो कर रहे होते है और अगर वो फोन उठा ले तो उसे गुस्सा हो जाते है कि फोन क्यो उठा लिया वो तो कालर टोन सुन रहे थे अब मत उठाना .कुछ तो मोबाईल पर सिवाय फोन करने के गेम खेलते है ,गाने सुनते है , तस्वीरे खिचते है , वीडियो बनाते है या नेट करते है बस फोन ही नही करते . अब भला बताइए ये आराम के लिए है या दुख देने के लिए . आप ही करे फैसला . मै तो चली मोबाईल देखने  क्योकि कोई मैसेज आया  है शायद  आज कल मैसेज बहुत मजेदार् आने लगे है ना.  पर आप बताना जरुर कि मोबाईल मस्ती है या मुसीबत ..
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा
 
Sirsa
Haryana

जिन्दगी को प्रभावित करते धारावाहिक ...

जिन्दगी को प्रभावित करते धारावाहिक ...  

जी हाँ, आपको मानना ही पडेगा कि धारावाहिक हमारी जिन्दगी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं ...हम इन के इतने आदी हो चुके है कि बस .अब  ये हमारी निजी जिन्दगी मे  भी खुल कर  दखल देने लगे  हैं कि पूछो ही मत .पता है , हमारे पडोस मे शादी थी . टैंट वाले को एक सीरियल का वास्ता दिया गया कि अगर उस सीरियल  जैसी सजावट नही कि तो सारे के सारे पैसे काट लिए जाएगें . मेरी सहेली मोना बता रही थी कि जैसा  उस फलां सीरियल मे दाढी वाला लडका है बिल्कुल वैसा उन्होने दीदी के लिए पसंद किया है बस हमारे वाले का कद ज्यादा लंबा है .अब इससे क्या है कि पह्चान एक दम साफ हो जाती है . रश्मि कल ही शादी के बाद् पहली बार आई तो उसने अपनी सहेलियो को बताया कि जैसे फलां सीरियल मे बडी सी हवेली है बस उसके ससुराल मे भी वैसा है .बाहर बडा सा बगीचा है . झूला है . बस फर्क इतना है कि उस धारावाहिक मे  तीन कारे है और हमारे पास चार अब पता है हुआ क्या कि उसकी सहेलियो को वहां की सारी तस्वीर साफ हो गई कि उसका घर बार कैसा है..जहां किटी पार्टी मे महिलाए अपनी अपनी सास बहू की धारावाहिको से तुलना करती नही थकती वही आदमी भी कम नही है .लड्कियो को रिझाए कैसे   वो सब धारावाहिको से ही सीख रहे हैं और अकसर बतियाते मिल जाते हैं कि फलां सीरियल की लडकी तो बहुत सुंदर है अगर ऐसी ही मिल जाए तो क्या बात है या कुछ नही तो अपनी धर्मपत्नी को ताना देगे कि फलां सीरियल मे तो वो सास होते हुए भी इतनी सुंदर है एक तुम हो जो अभी से ही इतनी बूढी लगने लगी हो जरा सज सँवर के रहा करो जिम क्यो नही ज्वायन कर लेती ..वगैरहा वगैरहा .दीपक के चाचा का जब एक्सीडेंट हुआ तो उसकी माता जी सबको फोन पर रो रो कर बताती थी कि जैसे फलां सीरियल मे एक्सीडेंट हुआ था बस वैसा ही समझ लो इनका हुआ है जैसे वो आई सी यू मे था ये भी उसमे दाखिल रहे बिल्कुल वैसे ही हरे कपडे पहना कर रखते थे .अब भला बताओ ये तो हद हो गई ना .परसो ही श्रीमती जैन मिठाई खिलाने आई कि लडके का रिशता कर दिया मैने खुश होकर पूछा कि कोई फोटो लाई हो तो वो कहने लगी कि फोटो क्या वो बालिका वधू की हूबहू है अब मेरे पास कोई जवाब ही नही था . जो भी है जाने अनजाने ये धारावाहिक हमारी जिन्दगी मे जबरदस्त प्रभाव डाल रहे हैं कही आप इनसे प्रभावित तो नही है . भई, मै तो नही हूँ .. अरे बाप रे , लिखते लिखते समय का पता ही नही चला . मानसी के जन्मदिन पर जाना है और मेरा पसंदीदा  हारर सीरियल ने भी उसी समय आना  है . मै ऐसा करती हूँ कि जिस समय ऎड्स शुरु होती है मै उस समय चली जाऊगीँ और उसे गिफ्ट दे कर जल्दी  वापिस चली आऊगीँ  . इससे कहानी भी मिस नही होगी और मानसी भी नाराज नही होगी  .क्या  करू कहानी मे भयानक मोड जो आने वाला है ..पर पर एक बात साफ है कि मै इन धारावाहिको से बिल्कुल प्रभावित नही हूँ

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

क़ृपया कालर टोन बदल लें..

क़ृपया  कालर टोन  बदल लें..
जी हाँ ...टोन  बदलनी पडेगी  उनको मोबाईल  की ..अब आप सोच रहे होगें कि किसको  कहां और क्यो  . असल में क्या है .... मैं बात कर रही हूँ बिजली विभाग की .. आपको तो पता ही है कि आजकल बिजली कट  कितने लग रहे है ..  दिन मे 8 -10  बार फोन पर  बात हो जाती है यह जानने के लिए की लाईट कब आएगी ...क्योकि ना तो उसके जाने का समय और आने की तो उम्मीद ही क्या ...कहने का मतलब यह है कि उस समय  गुस्सा पूरे उफान पर होता ...पर जब उनकी कालर टोन  …वाहे गुरु .. वाहे गुरु .. वाहे गुरु जी .या भजन के बोल  सुनती तो गुस्सा काफूर हो जाता...अब पता है क्या हुआ ..   उन्होने अपनी मोबाईल टोन को  बदल दिया है .. अब बस एक ही आवाज आती है कि  .....दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम मे आपका स्वागत है ..बस .. एक तो बिजली विभाग .. उपर से फोन ना उठाना ..  भाई .. फोन तो तब भी जल्दी से नही उठाते थे पर तब वो  सग़ींत  इतना  अच्छा लगता  कि मन भजन  मे गुम हो जाता था ... गुस्सा खुद ब खुद उतर जाता  पर इसे सुन कर तो यकीन मानो रक्तचाप  और  बढ जाता है क्योकि एक तो बिजली विभाग ..दूसरा ऐसी टोन .....जिसके  जरिए बार बार याद दिलाया जाता है कि यह बिजली विभाग ही है .. इसलिए  चिल्ला चिल्ला कर कहना पड रहा  है कि टोन  फिर से वही होनी चाहिए .. कम से कम मन को सुकून तो मिलता था .... आम आदमी के सब्र का इतना भी इम्तेहान ना लें  ... अब आप ही बताए क्या मै गलत कह रही हूँ .. उन्हे  टोन बदलनी चाहिए या नही ...  

मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana 

महिला दिवस ..... मेरी नजर में

महिला दिवस .............मेरी नजर में
8मार्च  ....महिला दिवस यानि खूब गहमा गहमी का दिवस ....बस इसे मनाना है ...किसी भी सूरत में.....चाहे प्रशासन हो....या कोई संगठन ..क्लब हो या कोई एन जी ओ....सब अपने अपने ढगं से मनाते हैं..इस दिन जबरदस्त भाषण बाजी होती है .. महिलाओ को कमजोर बता कर उन्हे आगे आने के लिए उत्साहित किया जाता है ..नारी सशकितकरण की याद भी उसी दिन आती है .दावे किए जाते है कि हमारे यहाँ क्रार्यक्रम मे 50 महिलाए आएगी तो कोई कहता है कि हमारे पास 100 आएगीहैरानी की बात.......आती भी हैं  ..
उस दिन उनका पूरा समय भी लिया जाता है ..कई बार उन्हे खुश करने के लिए उस दिन  ट्राफी दी जाती है...
आईए ....एक नजर डालते हैं...... 8मार्च की सुबह पर......
मिताली का अपने पति से जम कर झगडा हुआ...क्योकि दिवस मनाने के चक्कर मे जल्दी जल्दी वो ड्बल रोटी जला बैठी और अंडा कच्चा ही रह गया ....पति महोदय बिना कुछ खाए द्फ्तर चले गए ...दीपा को महिला दिवस का कही से न्यौता ही नही आया था .....इस चक्कर मे घर मे काफी तनाव था .....दो बार अपने बेटे की पिटाई कर चुकी है...और चार बार फोन उठा कर देख चुकी है...पर घंटी है कि बज ही नही रही ..वो महिला दिवस को कोसती हुई ....बालो मे तेल लगा कर ....जैसे ही नहाने घुसती है....अचानक फोन बज उठता है ...नेहा बता रही थी कि कल तो फोन मिला नही ...बस ..अभी आधे घंटे मे क्लब पहुचों....   आगे आप समझदार हैं.....कि क्या हुआ होगा ....
सरकारी दफ्तर मे काम करने वाली कोमल की अलग अलग तीन जगह डयूटी थी ...उधर घर पर पति बीमार थे और लड्की के बोडॅ का पेपर था.. उसे सेंटर छोड कर आना था  ....टेंशन के मारे उसका दिमाग घूम रहा था उपर से दफ्तर से फोन पर फोन आए जा रहे थे कि जल्दी आओ....
अमिता समय से पहले तैयार होकर खुद को बार बार शीशे मे निहार रही थी कि अचानक बाहर से महेमान आ गए .....वो भी सपरिवार ...दो दिन के लिए ....उन्हे नाश्ता देकर जल्दी आने का कह कर  वो तुंरत भागी ...
संगीता के पति का सुझाव था कि उनकी बेटी के शादी के काडॅ वही प्रोग्राम मे बाटँ दे...... उससे चक्कर, पेटोल और  समय बच जाएगा ......कार्ड निकालने के चक्कर मे वो बहुत लेट हो गई ....और वहाँ बाट्ने तो दूर वहाँ लिफाफा ही किसी ने पार कर लिया ....
खैर , ऐसे उदाहरण तो बहुत है ..पर बताने वाली बात यह है कि प्रोग्राम मे सभी महिलाए मिलकर खुश होकर ताली बजा कर महिला दिवस का स्वागत कर रही थी ......वो अलग बात है कि उघेड बुन सभी के दिमाग मे अलग अलग चल रही थी ....
चाहे वो घर की हो द्फ्तर की हो या किसी अन्य बात की ...
महिलाए है ना..... चाह कर भी खुद को परिवार से अलग नही कर पाती .....शायद यह हमारी सबसे बडी खासयित है जोकि पूरे संसार मे कही और नही मिलेगी...
हमारे देश मे हर परिवार का अपना रहन सहन है...अपना खान पान है.....परिवार जब शादी के लिए रिश्ता खोजता है तो उसके जहन मे होता है कि उसे कैसी लडकी चाहिए वो नौकरी पेशा हो या नही फिर बाद मे किस बात की तकरार ..
ये तो हम महिलाओ की खासियत है कि घर और द्फ्तर या परिवार मे सही तालमेल रखती हैं .. आदमी महिला के खिलाफ कितना बोल ले पर उसके बिना वो अधूरा ही है ...और यही बात हम महिलाओ पर भी लागू होती है .. कोई भी महिला आदमी के बिना अधूरी है तो फिर तकरार किस बात की है .. क्यो अहम बीच मे आ जाता है .. क्यो वो अपनी अपनी जिंदगी मे खुश नही रह सकते .. प्रश्न इतना बडा भी नही है जितना लग रहा है .. इसका उतर हमे खुद खोजना होगा वो भी कही दूर जाकर नही बलिक अपने घर –परिवार मे .
मेरे विचार में .. बजाय मंच पर खडॆ होकर अपने हक की बात करने से या चिल्ला चिल्ला दुहाई देने से अच्छा है कि महिला को अपने घर की चार दिवारी मे परिवार वालो के बीच  ही फैसला लेना होगा .. अपना अच्छा बुरा खुद सोचना होगा .. माईक के आगे जोर जोर से दुहाई देने से बजाय खुद का मजाक बनने से कुछ हासिल ना हुआ है ना ही होगा .आप खुद ही नजर डाले कि बीते सालो मे 8 मार्च के बाद कितना और कहा कहा बद्लाव आया है तो सिथति खुद ब खुद साफ हो जाएगी ..
 इसीलिए घर से अलग होकर या परिवार से उपर होकर फैसले लेने की बजाय परिवार के साथ चलेगे और  अगर आपके अपने अपने परिवार मे जाग्रति आ गई तो हर रोज महिला दिवस होगा और बजाय लडाई झगडॆ के महिला और उसकी भावनाओ को समझ कर उसे ना सिर्फ घर मे बलिक बाहर भी सम्मान मिलेगा ..जिसकी वो हकदार है ..नही तो इतने सालो से महिला दिवस मना रहे है ना .. बस आगे भी सालो साल  मनाते ही रह जाएगे ..
तो .. 8 मार्च की सार्थकता तभी होगी जब हम सभी  इस बात का गहराई से मथनं करे और जल्दी से जल्दी किसी निण्रय पर पहुचे ..
ये तो मेरी राय है आप इन विचारो से सहमत है या नही ....अपने विचार साझां करें ....

मोनिका गुप्ता
सिरसा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

सडको पर झगडती जिन्दगी ..

लेख देख कर आपको अजीब तो लग रहा होगा कि यह तो बहुत आम सी बात है इसमे अलग क्या है....सडक पर  अकसर वाहनो का ... वाहन चालको का .. झगडा होता ही रहता है .. तो क्या ... आपने सही कही .... पर मैं भी तो इस बारे मे कुछ् कह ही नही रही ..मै तो उस झगडे की बात कर रही हूँ जो घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर सडको पर आ कर फूटता है  ...
मनु और उसकी पत्नी आफिस एक साथ ही निकलते हैं ... रास्ते भर दोनो गाडी मे अपना गुस्सा ...अपनी खीज निकालते हैं और चिल्ला- चिल्ला कर बाते करते हैं घर पर बच्चो की वजह से चुप रहना पडता है ..एक बार तो गाडी मे पति पत्नी का झगडा इतना बढ गया कि भारी रश मे पत्नी ने चलती कार मे दरवाजा खोल कर कूदने की कोशिश की तब पति ने बहुत गुस्से से उसका हाथ अंदर खीचा ..
वही एक और कहानी मे दिल्ली से हिसार के रास्ते मे मैने देखा कि हमारे आगे एक कार पहले तो आराम से जा रही थी ..उसमे दो लोग सवार थे .. फिर पता नही दोनो पति पत्नी मे क्या बात हुई होगी कि पति ने इतनी तेज कार चलाई कि वो हमे दिखनी ही बंद हो गई पर हाँसी के पास उनकी कार की  पेड से जबरदस्त ट्क्कर हुई थी ...पुलिस की जीप वहाँ खडी हुई थी ...दोनो को बहुत चोट आई थी .. बताओ है कोई जवाब ...
ऐसा ही कुछ रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला ... एक महिला जोकि अच्छे परिवार की लग रही थी .. शायद वो अपने भाई को छोडने आई हुई थी...पहले तो वो धीरे धीरे बात करते रहे फिर आवाज तेज आनी शुरु हुई ...  कुछ ही देर बाद महिला रो रही थी और कह रही थी कि उसे भी साथ  घर ले चलो वो अपने पति के साथ नही रहना चाहती ...सब लोग उस महिला को देखने लगे पर वो लगातार रोती ही रही ..हम अक्सर देखते हैं कि कई बार लडाई घर पर होती है या आफिस के लिए देरी हो रही होती है  और गुस्सा वाहन पर निकाला जाता है .. मसलन वाहन बहुत ही तेज चलाया जाता है ... अपनी गलती होने पर भी दूसरे से झगडा किया जाता है कि मानो सारी की सारी गलती उसी दूसरे की हो.. 
ऐसे ना जाने कितने उदाहरण है....
 पर सोचने की बात यह है कि सडको पर  यह झगडा  कहा तक ठीक है ..अगर घर का माहौल ठीक हो ... आपस मे एक दूसरे को समझते हो ...तो यह नौबत ही ना आए .और ना ही सडको पर बोडृ लगाने की जरुरत पडेगी कि घर पर आपका कोई इंतजार कर रहा है ... इसलिए अगर आप भी घर से निकल रहे हैं तो सावधान हो जाए और जनाब जरा मुस्कुरा कर .. गुस्से को घर पर छोड कर ही निकले ..
मोनिका गुप्ता  
सिरसा 
Sirsa
Haryana

नाजुक हैं आदमी ...

नाजुक हैं आदमी ...
सुन कर आप सोच रहे होगे कि भला आदमी और नाजुक ... हो ही नही सकते. लेकिन यह बात काफी हद तक सही है हालांकि अपवाद तो हर जगह होते हैं  असल मे .. आदमी खुद दिखाते नही हैं जैसाकि महिला करती है कि तुरंत रोना शुरु कर देती हैं लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर  आदमियो का दिल एक दम मोम की तरह होता है ..पर वो मजबूत हैं  बस यह दिखाने की कला उन्हे आती है. अभी कुछ दिन पहले मेरी सहेली अपने बच्चे को स्टेशन छोड्ने आई तो उसने बताया कि इसके पापा इसे छोड्ने कभी नही आते वो तो इसे बाय भी नही बोल सकते इसके एक दिन जाने से पहले ही वो उदास हो जाते हैं. पापा को देख कर बेटा भी उदास हो जाता है, इसलिए उसे ही हमेशा मन पक्का करके छोड्ने आना  पडता है ..
एक हमारे पडोसी हैं जब से उनकी बेटी की शादी हुई है तब से वो चुप से हो गए है .. बेटी जब भी मिलने घर आती है वो उससे गले लग कर खूब रोते है ..अब जब उसके भी बेटी हो गई है, उनके वापिस जाने के बाद वो अकेले बैठ कर खूब रोते हैं. हार कर उनकी पत्नी को मन मजबूत करके उन्हे चुप करवाना पडता है ..
एक मित्र तो और भी कमाल है, उनकी लड्की 25 साल की हो गई है. जब भी उसके लिए कोई रिश्ता आता है तो वो किसी छोटे बच्चे की तरह रोने लग जाते है.
दीपक जब से पेपर मे प्रथम आया और उनके घर जब भी बधाई का फोन आता उसके पापा  भावुक हो उठते..
मोहन जी की पत्नी जब तक  अस्प्ताल मे थी वो उनसे मिलने नही गए क्योकि वो उन्हे बीमार नही देख सकते थे .. वो अपना ही दिल पकड कर बैठ गए कि उन्हे ही कही कुछ ना हो जाए.
ऐसे ना जाने कितने उदाहरण है इस बारे मे ... जिससे बस एक ही बात सामने आती है कि आदमी भी नरम दिल के इंसान होते हैं बस वो दिखाते नही है अपने दिल मे ही रखते है यह बात आपको भी पता होगी ... है ना ... तो अगर आप किसी को पत्थर दिल आदमी बोले तो बोलने से पहले सोच लें ..
मोनिका गुप्ता 
सिरसा        
हरियाणा

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

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