बुधवार, 21 अप्रैल 2010

स्वच्छ्ता अभियान ...नया साल नया सवेरा

स्वच्छ्ता अभियान ...नया साल नया सवेरा
सडक पर चलते हमे ऐसे बहुत पढे लिखे मिल जाएगे. जो सड्क को ना सिर्फ कूडादान समझते हैं बलिक उसे चलता फिरता शौचालय भी बना कर रखा है. अपना घर साफ रहना चाहिए बाकी से क्या मतलब. बस यही सोच खराब कर रही है. हम सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल कर निशचिंत होकर बैठ जाते हैं  और दिन रात उसे ही कोसते है खुद कुछ नही करना चाह्ते. सरकार भी कहा तक देखेगी. वो तो स्कीम लागू कर देती है. अब उसका अनुकरण तो जनता को ही करना है.खैर, मैं बात कर रही हूँ सड्क को शौचालय समझने की. एक समय जरुर ऐसा था जब मैला ढोया जाता था फिर समय बदला और बहुत तेजी से बदला.हालकि कुछ राज्यो मे आज भी ढोया जाता होगा पर मैं अपने अनुभव से बता रही हूँ. हरियाणा के सिरसा के सभी 333 गावो मे मुझे स्वच्छ्ता से सम्बधित कुछ ऐसा कुछ देखने को मिला जिस पर विश्वास करना नामुमकिन था. इतना जोश इतनी जागरुकता.

बात 2007-08 की है .देश के अन्य राज्यो की तरह हमारे सिरसा मे सम्पूर्ण  स्वच्छ्ता अभियान चला. उस समय जिला के अतिरिक्त उपायुक्त ने गाँव के सरपंचो, पंचो, आगंवाडी वर्कर, स्कूली अध्यापक व अन्यो को बुला कर एक बैठक ली. उसमे पहले लोगो  के मन को ट्टोला गया .उनसे जानने की कोशिश की गई कि गावँ के खेतो मे लोग शौच के लिए कितने जाते हैं. जवाब मिला कि ज्यादातर सभी जाते है. पुन; पूछ्ने पर उन्होने बताया कि अच्छा तो नही लगता पर चारा भी तो कोई नही है बरसो बरस से चली आ रही आदत को बदलना नामुमकिन है. कोई क्यो बदलेगा अपनी आदत. बस तब उनकी सारी बाते जान कर उन् लोगो को बाहर शौच जाने से होने वाली बीमारिया बताई गई. महिलाओ को शर्म का अहसास करवाया गया कि जब वो खुले मे शौच जाती है तो ना जाने कितने लोगो की गंदी निगाहो का सामना करना पडता होगा.उस मीटिंग मे आए लोगो को सारी बाते सुन कर दिल से बहुत मह्सूस हुआ कि  वाकी मे वो कितनी गंदगी मे रह रहे है जो शौच वो खेतो मे जाकर करते हैं वहाँ से मक्खिँया वापिस घरो मे आकर दुबारा गंदगी फैलाती हैं यानि आप शौच ही खा रहे है वो भी अपना नही बलिक दूसरो का भी. इन सभी बाते को सुनकर लोगो को इतनी घिन्न आई कि उन लोगो ने यह फैसला कर लिया कि अब ना तो वो बाहर जाएगे बलिक और लोगो को भी समझाएगे कि घरो मे ही शौचघर बनवा कर उसमे ही जाना चाहिए.
सभी गावँवासी ततकालीन अतिरिक्त उपायुक्त श्री युधबीर सिह ख्यालिया की बातो से इस कदर प्रभावित हुए कि एक होड सी लग गई कि हम अपने अपने गाँव को खुले मे शौच मुक्त बना कर ही दम लेगें. सभी 333 गावो मे तो मानो एक लहर सी चल पडी. जय स्वच्छता के  नारो से सारा सिरसा गूजँ उठा. सारा गावँ मानो एक परिवार बन गया. इसी बीच जय स्वच्छ्ता समीति का गठ्न करके उन्हे गावँ गावँ भेजा गया. लोगो मे जागरुक्ता पैदा की गई. गांव के बच्चो और महिलाओ को इस अभियान से जोड कर निगरानी कमेटी का सदस्य बना लिया गया. सुबह शाम वो लोग  खुद निगरानी कर के बाहर शौच जाने वाले लोगो को हाथ जोड्कर प्यार से समझाने लगे. ऐसी बात नही थी कि सब आराम से होता चला गया बहुत जिद्दी लोग भी मिले जिन्होने कहा कि वो तो बाहर ही शौच के लिए ही जाएगे घर मे नही जाएगे. पर जब सभी गावं के लोगो ने उन्हे वास्ता दिया और जय स्व्च्छ्ता टीम ने समझाया तो बद्लाव आना शुरु हो गया. चाहे कितना भी गरीब घर क्यो ना हो. सभी ने शौचालय बनाने शुरु कर दिए. धीरे धीरे चारो तरफ वातावरण साफ होता चला गया. सिर्फ तीन महीनो  मे गाँव को लोगो ने वो कर दिखाया जो सम्भव ही नही था 333 गावँ खुले मे शौच मुक्त हो गए. इस अभियान मे बच्चे, महिलांए और सभी लोगो ने योगदान दिया तभी यह सफल हो पाया.
आज गाँव के लोग मानते हैं कि जहाँ पहले  नाक पर कपडा रख कर गुजरना पड्ता था  आज वही  सुबह ताजी हवा मे सैर के लिए लोग देखे जा सकते हैं. इस अभियान मे  हरियाणा का सिरसा पूरे भारत मे प्रथम रहा. कुल 333 मे से 260 को निर्मल ग्राम पुरुस्कार मिले. सन 2009 मे इसका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड मे लिखा गया. महामहिम राष्ट्र्पति महोदया ने हिसार मे इनाम बाँढे. स्व्च्छ्ता की लहर का एक उदाहरण तब देखने को मिला जब 26 जनवरी 2010 मे  सिरसा के ही गाँव कालुआना को स्वच्छ्ता के मामले मे प्रदेश भर मे प्रथम घोषित किया गया है जिसने सरकार से 20 लाख का पुरुस्कार पाया है यानि सफाई की यह अलख लगातार जल रही है और अपनी रोशनी से औरो को प्रेरणा दे रही है. है ना हैरानी की बात. इतनी जागरुकता. विश्वास करना मुश्किल है.
पर आज सिरसा के सभी गाँव के लोगो मे पूरी जागरुकता है वो जान चुके हैं कि स्व्च्छ्ता कितनी जरुरी है. गाव की बहन बेटिया खुश है कि अब लोगो की गंदी नजरो से दो चार नही होना पड्ता. बच्चे खुश है कि अब बीमारिँया ही खत्म हो गई हैं. अब वो और भी स्व्च्छता का ध्यान रखने लगे है. जैसा कि गली मे फालतू पानी ना बहे. पीने के पानी का साफ हो, सोख्ता गड्डे बनवाना, हाथ साफ रखना और हाथ धो कर पानी पीना आदि.
इसमे कोई शक नही कि देश मे एक समय ऐसा था जब गांव मे सिर पर मैला ढोया जाता था. पर यहाँ  आज इतनी जागरुक्ता आ गई है कि लोग स्वच्छ् रहना पसंद करने लगे हैं इस अभियान ने यह दिखा दिया कि गांव के लोग भी किसी से कम नही है बस उन्हे एक रास्ता दिखाने वाला चाहिए. अगर यही सोच हम शहर वालो मे भी हो जाए तो क्या बात है क्योकि पढे लिखे तो हम उनसे ज्यादा ही है शायद. काश ऐसा हो जाए कि सभी अपने अपने अधिकारो को, कर्तव्यो को जरा भी समझ ले  हाथ पर हाथ धरे ना बैठे रहे. फिर तो शायद देश का नक्शा बदलने मे जरा भी समय नही लगेगी.
जय स्वच्छ्ता
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

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