गुरुवार, 27 मई 2010

अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट.....

अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट.....
रिटायरमैंट का नान सुनते ही मन मे एक ही बात आती है कि अब... बस... लाईफ मे फुल स्टाप लग गया. लेकिन जो लोग ऐसा सोच रहे हैं उनके लिए एक खुश खबर है अब अगर वो वाकई मे समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उनके लिए ढेरो रास्ते खुले हुए है. सरकार ने यह मससूस किया है कि रिटायरमैंट के बाद खाली बैठ कर लोग बहुत भावुक हो जाते हैं चिडचिडे हो जाते हैं वो मन ही मन सोचते हैं कि बस हमने जितना काम करना था वो कर लिया पर असल मे सही मायनो मे उनमे ऊर्जा की कोई कमी नही होती  इस बात को ध्यान मे रखते हुए सरकार ने उन सभी सीनियर सिटीजन को निवेदन किया है कि जो कोई भी समाज मे अपना योगदान देना चाहता हो उसका स्वागत है. बाकयदा उनकी संस्था होगी जिसमे वो अपनी पसंद के काम का चुनाव कर सकते हैं मान लो अगर वो अध्यापक रिटायर हुए है तो वो बच्चो को पढा सकते हैं या जिसमे भी रुचि हो वो काम कर सकते हैं जिससे ना उनमे भावना आएगी कि बस हमारी जिंदगी रुक गई है और वह उसी उत्साह और जोश के साथ काम करते जाएगें
हिसार के कृषि विश्व विधालय के आडिटोरियम मे एक क्रार्यक्रम के दौरान उपायुक्त् श्री युद्गबीर सिह ख्यालिया ने मीटिंग मे आए सभी सीनियर सिटीजन को बताते हुए यह कहा कि उनकी सेवाओ की, अनुभवो की देश को समाज को जरुरत है ताकि विकास के काम सुचारु रुप से चलते रहें. इस बात पर सभी ने बहुत खुश होकर ताली बजा कर इसका स्वागत किया .
काफी महेमानो को बोलने का अपने विचार रखने का मौका दिया गया.सभी बहुत खुश थे कि सरकार के साथ मिल कर अब  वो भी समाज मे अहम भूमिका निभाएगे बलिक बहुतो ने  अपने सम्बोधन मे यह भी कहा कि अब हमे खाली घर पर बैठ कर चिढ्ने कुढ्ने की बजाय काम मे ध्यान देना होगा.बच्चो को समझ कर उनके साथ मिल जुल कर रहना होगा.
कुल मिला कर सभी सीनियर सिटीजन ने क्रार्यक्रम बहुत पसंद किया और एक नए जोश नई आशा के साथ वो हाल से बाहर निकले.
इसमे कोई शक नही कि सरकार की तरफ से यह बहुत अच्छी पहल है अगर इस स्कीम से सम्बधित अधिकारी संजीदा होकर इसे लागू करे तो यकीनन इसके नतीजे बहुत अच्छे आने की उम्मीद है क्योकि इस स्कीम के बाद् सीनियर सिटीजन भी उस सम्मान को पा सकेग़ें जिसके वो सच्चे हकदार हैं और हमे उनका अमूल्य अनुभव मिल जाएगा जिसकी हमे बहुत जरुरत है इसलिए अब फुल स्टाप नही रही रिटायरमैंट..... अब तो शुरुआत है नई जिन्दगी की...
मोनिका गुप्ता
सिरसा   
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

हम और हमारी नकारात्मक सोच...

हम और हमारी नकारात्मक सोच...
कल ही हमारे मित्र विदेश से लौटे. उनको रिसीव करने हम भी एयर पोर्ट गए. वहाँ कार मे बैठ्ने से पहले उन्हे मिठाई खिलाई तो उन्होने उसका रैपर कोई कूडा दान ना दिखाई देने की वजह से सड्क पर ना डाल कर अपनी जेब मे ही डाल लिया. जबकि हमारे ही भारतीय मित्रो ने खुद तो मिठाई के रैपर को जमीन पर ही फेंक दिया और हसँते हुए अपने मित्र को सलाह देने लगे कि भई, यह तो भारत है यहाँ सब कुछ होता है यहाँ क्या सोचना... पूरी सडक अपनी है कही भी फेंक दो... बे वजह जेब क्यो खराब करनी है... उस समय तो मैं चुप ही पर वापिस लौट्ते वक्त यही सोचने लगी कि सारे आरोप सरकार पर लगा कर हम निशचिंत होकर बैठ जाते हैं कि सरकार ये नही कर रही वो नही कर रही बिना यह जाने कि हम क्या कर रहे है यह हमारी नकारात्मक सोच नही तो क्या है. अगर हम सभी अपना अपना फर्ज़ समझ ले तो  हमारे देश मे भी क्या कुछ नही हो सकता.
हम विदेशो की बात करते हैं कि वहा कठोर कायदे कानून है वहाँ सफाई रखनी जरुरी होती है नही तो फाईन लग जाता है वगहैरा वगहैरा .
पर उसके मुकाबले हम यहा क्या कर रहे हैं सिवाय कोसने के कि हम कितने गंद मे रह रहे हैं ...
और तो और बार बार मना किया जाता है कि गाडी चलाते समय सीट बेल्ट बाँध ले. हम मे से कितने बाधँते है. हाँ, अगर सामने चैकिंग़ हो रही होगी तो फाईन के चक्कर मे फटाफ़ट लगा लेग़ें... गाडी चलाते समय मोबाईल का इस्तेमाल भी नही करने की सलाह दी जाती है. पर हम तो महान है ना सबसे व्यस्त आदमी है अगर बात नही की तो लाखो का नुकसान जो हो जाएगा. हाँ, अगर कोई ट्क्कर वक्कर हो गई तो दोष अपना नही मानेग़ें...
अगर हम अपनी नकारात्मक सोच हटा कर सकारत्मक सोचेगे और समाज मे रहते हुए नियमो का पालन करेगें तो हमारा देश भी आदर्श देश बन सकता है.
यही बात काफी हद तक  मीडिया पर भी लागू होती है वो समाज को सच्ची दिशा दिखा सकता है पर उसकी सोच भी कम नही है मार पिटाई, खून खराबा, अन्धविश्वास, भविष्य वाणी, फालतू की फिल्मी खबरो आदि से भरी  रहती है खबरे पर जब बात आती है कुछ ऐसी खबरो की जिनसे समाज मे चेतना आए... वो तो गायब ही रहती है. अब ताजा उदाहरण ही है कि हमारे देश के स्कूली बच्चे ने एवरेस्ट पर जीत हासिल की और सबसे कम उम्र का विजेता बन गया. कोई बच्चो का खेल नही था कि वो ऐसे ही चढ गया. पर वो खबर भी ना के बराबर रही. जब मैं कुछ बच्चो का इंटरवयू लेने पहुची कि उन्हे यह जान कर कैसा लगा कि उनकी ही उम्र का अर्र्जुन ऐवरेस्ट को जीत कर लौटा है. उन्हे तो हैरानी हुई क्योकि इस बात की जानकारी ही नही थी उन बच्चो को कि ऐसा भी हुआ है अब भला बताओ कि समाज के सामने अगर उदाहरण ही नही रखे जाएगे तो समाज तरक्की कैसे करेगा सिर्फ क्राईम से तो गाडी नही चलेगी ना.
हम सभी को एक दूसरो पर दोष डालने की बजाय खुद को अच्छा बनाना होगा अपनी सोच सकारात्मक रखनी होगी अच्छे उदाहरण समाज के सामने रखने होग़ॆं ताकि उनका अनुकरण किया जा सके. इसमे आपसे अच्छी भूमिका तो कोई निभा ही नही सकता ...    
 मोनिका गुप्ता
सिरसा 
हरियाणा
Sirsa
Haryana 

शनिवार, 15 मई 2010

ये मौसम का जादू है ...

ये मौसम का जादू है ...
जी हाँ, मौसम भी हमारे जीवन मे जाने अंजाने जादू करता है हमारे मन को खुश, उदास या कभी थिरकने पर मजबूर कर देता है. आप मान लिजिए कि आप आफिस जा रहे हैं जबरदस्त गरमी है आपको ना सिर्फ गुस्सा आएगा बलिक सड्क पर  बेवजह पसीना पोछ्ते आप किसी से भी लडाई कर बैठेगे उसे धमकी भी दे डालेगे पर इसी स्थिती मे अगर मौसम साफ  ना हो यानि आकाश मे बाद्ल हो तो यकीनन आपका सीटी बजाता गुनगुनाता मन उसे बिना कुछ् कहे मुस्कुरा कर आगे बढ जाएगा.
बात सिर्फ यही खत्म नही होती .बरसात  का ये मतलब भी नही निकालना चाहिए कि मन हमेशा खुश ही रहेगा. पता है हल्की हल्की बूंदा बांदी अच्छी लगती है पर जहाँ मूसलाधार हो जाए वहा मन पकौडे और चाय से हट कर चिंता मे हो जाता है कि कही तेज बारिश से सड्क या गली का पानी घर मे तो नही आ जाएगा या छ्त तो ट्पकने नही लगेगी. ऐसे मे फिल्मी गाने हवा हो जाते हैं और टेंशन उसकी जगह ले लेती है क्योकि नेट और फोन भी अनिशिचत काल के लिए शांत हो जाते हैं और उनके शांत होने का मतलब हमारा सारी दुनिया से सम्प्रर्क  टूट जाना ..बसंत के मौसम मे फूल कितने अच्छे लगते हैं उन पर कितनी कविता बन जाती है पर जब हमे कोई फूल ही ना भेजे तो गुस्से का कोई अंत ही नही होता.
अब रही बात सरदी की.कितना भला लगता है ऐसे मौसम मे बाहर  धूप मे बैठना. पर गुस्सा तब आता है जब आप बाहर पलंग़ और कुरसी डाल कर बैठे हो और धूप बादलो मे छिप जाए और शाम तक दर्शन ही ना दे उस समय जबरदस्ती आपको घर के भीतर ही जाना पडता है.
तो देखा कितने उदाहरण है हम तो वही है पर मौसम अपना जादू चला कर हमे अपने आधीन कर ही लेता है. आप मेरी बात से सहमत है या नही जरुर बताना.
मोनिका गुप्ता   
सिरसा 
हरियाणा 

Monica Gupta
Sirsa, Haryana

शुक्रवार, 14 मई 2010

बोल तू मीठे बोल ......

बोल तू मीठे बोल ......
लेख का टाईटल पढ कर आपको हैरानी हो रही होगी कि भला इस लेख मे क्या होगा ... भला ये भी कोई लेख हुआ. लेकिन जनाब सच पूछो तो आज के समय मे कमी ही इसी बात की है. हम ना तो किसी बात के धन्यवादी है और ना ही किसी की प्रशंसा करके खुश है. हांलाकि अपवाद तो होते ही है पर अधिकतर लोग किसी की तारीफ करने की बजाय मीठे बोल बोलने की बजाय  चुप रहना या कन्नी काट्ना ही बेहतर समझते हैं.
अब चाहे आप वेबसाईट की बात ले लो. तरह तरह के लेख, विचार इत्यादि छपते ही रहते हैं.  हम लोग उसे पढते भी है और शायद मन ही मन सराहते भी होगें पर जब बात आती है दो शब्द बोलने की ... हम पीछे हट जाते हैं और बहाना लगाते है अपनी व्यस्तता का या कोई और ...
अब सोचने की बात तो यह है कि आखिर किसी की तारीफ करने मे हम हिचकिचाते क्यो हैं आखिर  हमारा जाता क्या  है. लेकिन नही ...हम लोग मौका परस्त हो गए हैं तारीफ अगर करते भी है तो आमतौर पर उसकी जिससे काम निकलवाना हो. मै दुबारा कहना चाहूगीँ कि अपवाद होते हैं इसलिए आप बात को अपने उपर ना लेकर जाए कि हम तो ऐसे नही है. हाँ, तो मै कह रही थी कि तारीफ करने से आप को ही फायदा होगा वो ऐसे कि जिसकी आप तारीफ करेगे जिसके लिए मीठे बोल बोलेगें वो आप पर ना सिर्फ ज्यादा ध्यान देगा बलिक दस लोगो के सामने आपकी भी तारीफ करेगा.इतना ही नही वो खुद भी महेनत करके यह चाहेगा कि उसे फिर प्रशंसा मिले उसके लिए वो अपना काम ज्यादा लग्न से करेगा.तारीफ करने का यह मतलब भी नही है कि आप झूठी तारीफ करनी शुरु कर दे.जो सच्ची और अच्छी लगे उसकी तारीफ जरुर करे पर कई बार किसी को हौंसला देने के लिए या उसका मनोबल बढाने के लिए झूठी तारीफ भी करनी पडे तो भी पीछे नही हटाना चाहिए.
 अब आप घर का ही उदाहरण ले कि अगर आपने अपनी माता जी की या पत्नी की प्रशंसा कर दी कि खाना अच्छा बना है या घर बहुत साफ रखा है तो वो यह सुन कर ना सिर्फ खुश होगे बलिक और अच्छा काम करेगे क्योकि सारा दिन घर मे काम करने के बाद अगर दो मीठे बोल सुनने को मिल जाए तो क्या बात है नि;सन्देह उनकी थकावट उडन छू हो जाएगी.है ना.
यही बात बच्चो पर भी लागू होती है कि आपका बच्चा,बहन या भाई  कोई चित्र बनाता है या पेपर मे कम ज्यादा अंक लाता है तो  भी उसका उत्साह बढाए कि आपने अच्छा किया आगे भी और अच्छा करना. ना कि उसे टोके कि यह क्या कर दिया तुझसे अच्छा तो पडोसी जैन साहब का बेटा है जो इतना लायक है.
किसी की तारीफ करके, किसी से दो मीठे शब्द बोल कर तो देखिए जो खुशी आपको उसके चहेरे पर देखने को मिलेगी, उसका मनोबल बढेगा  इसका तो आप अंदाजा भी नही लगा सकते.तो हो जाए तैयार दो मीठे शब्द बोलने के लिए. जो जादू की झप्पी से कम काम नही करेगा. आप ही बताईए कि मैं सही हूँ या नही.
मोनिका गुप्ता   
सिरसा  
हरियाणा 

Sirsa
Haryana

रविवार, 9 मई 2010

जब पापा ने बनाए मटर के चावल ......

जब पापा ने बनाए मटर के चावल ......
हमेशा से ही मम्मी और रसोई का नाता रहा है.मैने आज तक पापा को रसोई से पानी का गिलास खुद लेकर पीते नही देखा. पापा सरकारी अफसर हैं  इसलिए द्फ्तर के साथ साथ घर पर भी खूब रौब चलता है.
मम्मी सारा दिन  घर पर ही रहती हैं.दिन हो या रात सारा समय काम ही काम हाँ भाई... नौकरों से काम लेना कोई आसान काम है क्या, हाँ.... तो मैं ये बता रही थी कि पिछ्ले कुछ दिनो से पापा खाने मे कोई ना कोई नुक्स निकाल रहे थे. इसीलिए मम्मी ने रसोइए की छुट्टी कर के रसोई की कमान खुद सम्भाल ली थी.
 पर पापा को इसमे भी तसल्ली नही हुई.नुक्स निकालने का काम चलता रहा.और साथ मे एक बात और जुड गई कि मेरी माता जी खाना ऐसे बनाती.माता जी खाना वैसे बनाती.खैर समय बीतता रहा.
शनिवार को पापा यह कह कर सोए कि कि वो कल सुबह नाश्ते मे  बासी पराठा और आलू मैथी ही खाएगे.मम्मी ने बहुत मन से बनाया. पर वो भी पापा को पसंद नही आया.
उसी समय पापा ने एलान कर दिया कि वो दोपहर को खुद ही मटर के चावल बनाएगे. मम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट और मैं हैरान.पापा और खाना.मुझे समझ नही आ रहा था.
दोपहर के एक बजे मम्मी ने जबरदस्ती टी वी पर क्रिक्केट मैच देखते हुए पापा को
उठाया कि भूख लग रही है.खाना बनाओ. मैच बहुत मजेदार चल रहा था .... पापा अनमने भाव से उठे.मम्मी ने चावल पहले ही भीगो दिए थे इस पर पापा ने गुस्सा किया  माता जी तो पहले कभी नही भिगोते थे . फिर पापा ने कूकर माँगा.मम्मी के कहने पर कि पतीले मे ज्यादा खिले- खिले बनेगें पर पापा तो पापा ठहरे. जो बोल दिया सो बोल दिया. वैसे आप यह मत समझना कि मैं मम्मी की चमची हूँ. मैं सच बात का ही साथ देती हूँ.फिर पापा ने देसी घी लिया और खूब सारा उसमे डाल दिया ताकि मटर अच्छी तरह भुन जाए इतने मे मैच मे छ्क्का लगा जल्दी जल्दी मैच देखने के चक्कर मे उन्होंने मसाला भी बिना नापे डाल दिया.मैं और मम्मी चुपचाप पापा का काम देखते रहे.मम्मी तो चुपचाप गदॅन हिलाती रही और मै वँहा स्लैब पर बैठी  पापा का लाईव टेलिकास्ट देख रही थी. सच. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. उधर पापा ने मैच देखने के चक्कर मे मटर मे भी नुक्स निकालने शुरु कर दिए कि मटर तो मीठी है ही नही चावल कैसे अच्छा बनेगा. मैच मे फिर एक खिलाडी आउट हो गया.तभी दरवाजे पर घंटी बजी.मम्मी बाहर जाने को हुए तो पापा ने मना कर दिया कि पहले मसाला भुनने दो फिर जाना.मै उतर के जाने को हुई तो मुझे भी डाटं पड गई कि बार बार आने जाने से उनका ध्यान हट रहा है.तभी फिर एक खिलाडी आउट हो गया.बाहर फिर से घटीं बजी.उधर पापा से कूकर का ढ्क्कन बन्द ही नही हो रहा था. पापा बोले कि कूकर ही खराब है. मम्मी ने गदॅन मटकाते अगले ही पल उसे बन्द कर दिया. इस पर भी पापा बोलने से नही चूके कि उफ  आज कल के ये बरतन और कुरते से हाथ पोंछ कर बैठक मे चले गए.दुबारा घंटी बजने पर मैं बाहर भागी.
अरे. सामने दादी खडी थीं.उन्होने बताया कि शहर आने का एकदम से मन बना और वो आ गई.सुबह ही मटर के चावल बनाए थे.तो वो भी ले आई.
 दादी ने पानी पीया ही था कि कूकर की सीटी भी बज गई.पापा ने एलान कर दिया था कि कूकर वो ही खोलेगे.दादी की मौजूदगी मे उसे खोला गया.पर. पर  ...यह समझ ही नही आ रहा था कि यह चावल है या खिचडी.मटर के चावलो का पूरी तरह से हलवा बन चुका था.
पापा मैच देखते हुए धनिए की चटनी के साथ मजे से दादी वाले चावल खा रहे थे और हम. हम  मटर वाली खिचडी. नाक मुहं बना कर. इसी बीच मे भारत मैच जीत गया.पर पापा खुश होकर बोले कि रात को वो आलू की परौठी बना कर खिलाएगे.यह सुनते ही मैं और मम्मी कान पर हाथ रख कर जोर से चिल्लाए.नही.अब और  नही. यह सब देख कर दादी ठहाका लगा कर हँस दी और वो किस्सा सुनाने लगी जब मेरे दादा जी ने पहली और शायद आखिरी बार  गुड के चावल बनाए थे ..
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा

माँ

               माँ
माँ को है
विरह वेदना और आभास कसक का
ठिठुर रही थी वो पर
कबंल ना किसी ने उडाया
चिंतित थी वो पर
मर्म किसी ने ना जाना
बीमार थी वो पर
बालो को ना किसी ने सहलाया
सूई लगी उसे पर
नम ना हुए किसी के नयना
चप्पल टूटी उसकी पर
मिला ना बाँहो का सहारा
कहना था बहुत कुछ उसे
पर ना था कोई सुनने वाला
भूखी थी वो पर
खिलाया ना किसी ने निवाला
समय ही तो है उसके पास पर
उसके लिए समय नही किसी के पास
क्योंकि
वो तो माँ है माँ
और
माँ तो मूरत है  
प्यार की, दुलार की, ममता की ठंडी छावँ की,
लेकिन
कही ना कही  उसमे भी है
विरह, वेदना, तडप और आभास कसक का
शायद माँ को आज भी है इंतजार अपनो की झलक का

मोनिका गुप्ता    
सिरसा    
हरियाणा

Monica Gupta
Sirsa
Haryana

रविवार, 2 मई 2010

मुझे पहचानो ...

 मुझे पहचानो ...                  
मैं हू कौन.. जी हाँ, क्या आप जानते हैं कि मै हूँ कौन... चलिए मैं हिंट देता हूँ.. सबसे पहले मै यह बता दू कि मैं आम आदमी नही हूँ. मुझसे मिलने के लिए लोगो की भीड लगी रहती है पर मै जिला उपायुक्त नही हूँ. मेरे आगे पीछे 4-4 अंगरक्षक घूमते हैं पर मैं पुलिस कप्तान भी नही हूँ. मेरे पीछे दिन रात जनता पडी रहती है पर मैं कोई स्वामी जी या कही का महाराज भी नही हूँ.
मेरे बच्चे स्कूल मे प्रथम आते हैं और सभी स्कूल के प्रोग्रामो मे हिस्सा लेते हैं सारा स्टाफ मेरा सम्मान करता है पर मै स्कूल का प्रिंसीपल भी नही हूँ.
जिले मे कोई भी कार्यक्रम होता है तो मुझे जरुर बुलाया जाता है. मेरे साथ फोटो खिचवाई जाती है. रिबन कट्वाया जाता है ताली बजा कर स्वागत किया जाता है मेरी बातो को समाचार पत्र मे मुख्य स्थान दिया जाता है पर मै किसी समाचार पत्र का सम्पादक भी नही हू.
मेरे पास सभी खास अफसरो के फोन आते रहते है या मै जब भी फोन करता हू तो वो तुरंत पहचान जाते हैं और मुझे और मेरे परिवार को भोजन पर बुलाते हैं.
मुझे देख कर कौन कितना जला भुना या कितना खुश हुआ मैं सब जानता हूँ. आप सोच रहे होगें कि मैं यकीनन ही कोई पागल हू जो ऐसे ही बात किए जा रहा है तो जनाब, मै बताता हू कि मै कौन हूँ. 
मै हूँ चमचा”. एक दम चालू चक्रम चमचा. लोगो की चापलूसी करने मे सबसे आगे. थूक कर चाट्ने मे सबसे आगे. शहर मे कौन बडा अफसर है कौन नेता है उनकी पत्नी, बच्चे और तो और उनके कुतॆ का नाम उसकी पसंद ना पसंद सभी मुझे पता है. सभी को खुश रखना मेरा परम धर्म है तभी तो लोग मुझे फोन करके मुझसे मिलने को बैचेन रहते हैं क्योकि वो जानते है कि मै  ही उनके काम करवा सकता हूँ.
मै भी महान हूँ पता है जब मेरा मन होता है तब फोन उठाता हूँ
जब मन नही होता तब फोन उठाता ही नही चाहे कितनी घंटी बजती रहे. मै जानता हूँ कि जिसने मेरे पास चक्कर लगाने है वो तो लगाएगा ही चाहे घंटो ही इंतजार ही क्यो ना करना पडे
ना सिर्फ बडे लोगो से बलिक मीडिया से भी मै बना कर रखता हूँ. समय समय पर मैं प्रैस कांफ्रैस करता रहता हूँ ताकि वो सैट रहे. लोगो के काम के लिए लंबी कतार मेरे घर या दफतर मे कभी भी देखी जा सकती है. पता है मै गिरगिट की तरह रंग बदलने मे माहिर हूँ. कल जो मेरा जानी दुश्मन था आज वो मेरे साथ बैठ कर चाय पी रहा होता है.या आज मै जिसके संग चाय पी रहा हू वो कल मेरा जानी दुश्मन बन सकता है  काम निकलवाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ किसी भी हद तक जा सकता हूँ. बस अधिकारी लोग खुश रहने चाहिए.  
ये चमचागिरि मुझे अपने बडो से विरासत मे नही मिली बलिक समय और हालात को देखते हुए मुझे सीखनी पडी. मै जानता हूँ कि भले ही लोग मुझे पीठ पीछे गाली देते होगें मुझे अकडू की उपाधि भी दे दी होगी पर मुझे कोई असर नही. मै आज जो भी हूँ बहुत खुश हूँ.
तो दोस्तो, अगर आप भी खुश रहना चाहते हैं तो एक बार चमचागिरी के मैदान मे आ जाओ यकीन मानो एक बार समय तो लगेगा, अजीब भी लगेगा पर कुछ समय बाद आपको खुद ही अच्छा लगने लगेगा.
सच पूछो तो आज का समय शराफत, महेनत और ईमानदारी का नही है क्योकि उनकी कोई कद्र ही नही है या ये कहे कि सबसे ज्यादा पिसता ही शरीफ आदमी है इसलिए तो मुझे भी चमचागिरी को अपनाना पडा. तो अगर आप सुखी रहना चाहते है अपने सारे काम भी निकलवाना चाहते हैं तो बनावट और दिखावे की दुनिया मे आपका स्वागत है बिना देरी किए तुरंत आए और अधिक जानकारी के लिए शहर के किसी भी बडे अफसर से आप मेरा पता पूछ सकते हैं....
मोनिका गुप्ता    
सिरसा    
हरियाणा

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