सोमवार, 19 अप्रैल 2010

गाली प्रधान समाज

गाली प्रधान समाज
जहाँ मुझे लिखने मे झिझक महसूस हो रही है वही दूसरी ओर जिस प्रवाह से ... खुले आम .. अपशब्दो का प्रयोग हो रहा है कि शर्म से गर्दन झुक रही है .. बडे तो बडे आजकल तो बच्चे भी खुल कर इनका प्रयोग करते हैं ... जहाँ बच्चे घर मे पिता को सुन कर प्रभावित होते हैं वही सिनेमा ने भी कोई कसर नही छोडी ... रही सही कसर पूरी  कर दी टी .वी ने ...कहाँ तक बचे इन से ..और हमारे नेताओ की तो क्या कहिए ..खुले आम गाली गलौच कर के ना जाने वो आने  वाली पीढी पर किस तरह के संस्कार डालना चाहती है ..
आमतौर पर आजकल इसका चलन इतना बढ गया है कि बिना गाली दिए तो बात ही अधूरी लगती है तो क्या इसका कारण हमारी टेंशन .. हमारा तनाव है जो हमे गलत बोलने पर मजबूर करता है या फिर अब हम इसके अभयस्त् हो चुके हैं ..हमारा पसंदीदा डायलाग .. जब मी मेट मे हीरोईन फोन पर जब गाली देती है ..  बन चुका है और तो और माता पिता अपने दोस्तो के बीच बच्चो को  उसे सुनाने को कहते है ...
बताओ अब उम्मीद ही क्या की जा सकती है ..
गाली प्रधान समाज को कैसे रोका जाए ताकि आने वाली पीढी पर इसका असर ना पडे ....क्या पहल खुद  अपने परिवार से ही करनी होगी .. खुद ना तो बोलना होगा और ना ही सुनना होगा ... और जो भी गाली देकर बात करता हो उसकी सगंत छोड्नी होगी .. जरा सोचिए . मामला बहुत गम्भीर है . आपके क्या विचार हैं ...
मोनिका गुप्ता
सिरसा 
Sirsa
Haryana

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